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________________ [ १३ ] (३) रकारान्त स्त्रीलिंग शब्दोंके अंत्य 'र' को रा होता है । उदा० गिर--गिरा । (१८) संयुक्त व्यंजनमें पहले आये हुए क्, ग्, टू, ड्, त् दू, प्, श्, ष, स्, जिह्वामूलीय ( 2 ) और उपध्मानीयका (१८) प्राकृतमें लोप हो जाता है और बचा हुआ व्यंजन यदि शब्द आदिमें न हो तो उसकी द्विरुक्ति हो जाती है । और बादमें नियम के अनुसार उसमें परिवर्तन होता है । उदा० भुक्त-भुत्त, दुग्ध-दुद्ध, षट्पद-छप्पअ, निश्चल-निञ्चल, तुष्ट-तट्ट, निस्पृह - निप्पह, स्तद-तब | ( १९ ) संयुक्त व्यंजनमें पीछे आये हुए म्, नू, और य् का लोप हो जाता है । और शेष बचा हुआ व्यंजन यदि शब्दकी आदिमें न हो तो द्विरुक्तिको पाता है । उदा० युग्मजुग्ग, 1 नग्न- नग्ग, श्यामा-सामा । (२०) संयुक्त अक्षर में पहले या पीछे रहे हुए लू, बू, व् और का लोप हो जाता है । और शेष बच्चा हुआ व्यंजन यदि शब्दकी आदिमें न हो तो द्विरुक्तिको पाता है । उदा० उल्काउक्का, लक्ष्ण-सण्ह, शब्द - सद्द, उल्बण-उल्लण, पक्क-पक, वर्गवग्ग, चक्र-चक्क । अपवाद:- समुद्र - समुद्द, समुद्र । निद्रा-निंदा, निद्रा । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002742
Book TitleJinagam Katha Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherKasturbhai Lalbhai Smarak Nidhi Ahmedabad
Publication Year2008
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Canon, Agam, & agam_related_other_literature
File Size9 MB
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