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का प्रयोग होता है । उदा० प्रश्न-पह, पृष्णि-पण्ही (पानी), स्नात-हाम, वहि-त्रही, पूर्वाङ्ग-पुग्वण्ह, तीक्ष्ण-तिण्ह (ती')।
(१२) श्म, म, स्म, ह्य इनके स्थानमें म्ह का प्रयोग होता है और हल के स्थानमें ल्ह का प्रयोग होता है। उदा० कुश्मानकुम्हाण, ग्रीष्म-गिम्ह, विस्मय-विम्हय, ब्रह्मा-बम्हा, आहादआल्हाय ।
(१३) र्य के वीचमें और ई के वीचमें इ का प्रयोग प्राकृतमें होता है अर्थात् र्य का 'रिय' और है का रिह' हो जाता है । उदा० मार्या-भारिया, गाँ-रिहा ।
(१४) संयुक्त ल के पहले प्राकृतमें इ आजाता है । उदा. क्लेश-किलेस ।
(१५) ह्य का यह होता है। उदा. गुह्य-गुय्ह ।
(१६) तन्वी, बबी, लम्ची, गुर्वी इस प्रकारके स्त्रीलिंगी शब्दोमें व के पहेले प्राकृतमें उ माजाता है। उदा० तन्वीतणुवी, वह्वी-बहुवी इ० ।
(१७) शब्दके अंत्य व्यंजनका प्राकृतमें लोप हो जाता है । उदा० तमस्-तम, तावत्-ताच ।
अपवादः-(१). शरद-सरओ, भिषक्-मिसओ इत्यादि । आयुष्-आउसो, आउ; घनुप्-घणुह, घणू ।
(२) स्त्रीलिंगी शब्दोंके अंत्य व्यंजनको आ अथवा या हो जाता है।
उदा. सरित्-सरिआ, सरिया ।
अपवादः-विद्युत-विज्नु, क्षुध-लुहा, दिक्-दिसा, प्रावृष्पाउस, अप्सरस्-मच्छरसा, अच्छरा; ककुभ-कउहा ।
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