SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 256
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ २४१ ] वरमऊरी -(वरमयूरी ) उत्तम वायाइव - (वाताविद्ध) पवन मोरनी। से डगमगता हुआ । वरिसारात-(वरात्र ) भाद्र- वायाबन्धं -( वाचावन्धं ) पद और आश्विन मास । वचन से बद्ध होना । वरेलिया-(वृता) वरी हुई। वायाहययं - ( वाताहतकम् ) ववरोवेजा -(व्यपरोपयेयम् ) वायु से सूखा हुआ। जान से मारूं | वारो-(वारफ:) वारी । वसहीपायरासहिं -(वसति- बाल-(व्याल) व्याघ्र आदि प्रातराशः) मुकाम और जंगली जानवर । सुबह के नास्ते से | वाहलिया - (दे०) क्षुद्र नदी चसहेण -(वृपभेण) बैल के -प्रवाह ।। [साथ ] | विउसाणं - (विदुपाम् ) विद्वानों वंजणाहिलावो-(ध्यजनामि- के। लापः) व्यंजनों का उच्चारण। विधायइ-(विकीयते) विकता वाउलस्स- ( व्याकुलस्य ) है ।। ध्याकुल का। विकिणइ - ( विक्रीणाति ) वाउलिया- ( वातावल्या ) बेचता है। पवन का झपाटा । विक्खिरेज्जा -(विकिरेत) अलग वाडि -(धृति) वाड । अलग कर दे। वाउल्लयं-(दे० वाउलया) विगया --(वृकाः) वरू । पुतली । विज्झाए - (विध्याते) शान्त वाणारसी --- (वाराणसी) बना- होने के बाद । रस । देखो म. म. नी विढप्पड - (दे०) पैदा करता धर्मकथाओ' का कोश | Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002742
Book TitleJinagam Katha Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherKasturbhai Lalbhai Smarak Nidhi Ahmedabad
Publication Year2008
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Canon, Agam, & agam_related_other_literature
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy