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________________ [ २३८ ] मिहोकहा - ( मिथःकथा) आपस की बातचीत । मीसिज्जइ -( मिथ्यते ) मिश्रित ____की जाती है। मुकमाणीओ - ( मुच्यमानाः) मुक्त होती हुई। मुद्धयाई-(मुग्धकानि) मुग्ध ऐसे बालक । मुहपोत्तीए – (मुखपोतिकया) मुंह पर रखने का कपडा। मेढी-(मेठिः) आधारभूत । मेलयं--(मेलकम् ) मेल । मोयणि - (मोचनीम् ) मुक्त कर देने की विद्या । रहमुसलं - देखो टि. ५४ । रंधतियं - ( रन्धयन्तिकाम् ) रांधनेवाली । राईसर° - (राजा-ईश्वर तलवर-भाडम्बिक-कौटुंम्बिकश्रेष्ठी-सार्थवाह-प्रभृतयः) मांडलिक राजा-- युवराज अथवा अणिमादि सिद्धिवाला पुरुष - खुश होकर राजाने जिनको पट्टे दिये हैं ऐसे पुरुष - जिसके आसपास वसति व गाम न हो वैसे स्थान [ मडव] के मालिक - कुटुम्बपालक - श्रीदेवता की मूर्तियुक्त सुवर्णपट को जिन्होंने मस्तक पर लगाया है वैसे धनिक --- बडे बडे सार्थ को ले जानेवाले पुरुष - इत्यादि । रायसुए --(राजसूये ) राजय यज्ञ में । रुक्खाउब्वेयकुसलो- देखो टि. ३८ । याणामि -(जानामि ) जानता यावि -(च+अपि) भी । एच्छाए ---(रथ्यायाम् ) शेरी गली में । रडण-(रटन) चिल्लाहट । स्यणियर -( रजनिकर ) चंद्र। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002742
Book TitleJinagam Katha Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherKasturbhai Lalbhai Smarak Nidhi Ahmedabad
Publication Year2008
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Canon, Agam, & agam_related_other_literature
File Size9 MB
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