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[ १० ]
व्यंजनोंका प्रयोग निपिद्ध है। अतः शब्दके आदिमें नहीं आये हुए
और असंयुक्त ऐसे उपर्युक्त सभी अक्षरोंके आदि अक्षरका प्राकृतमें प्रयोग नहीं होता है अर्थात् उन सबके स्थानमें केवल 'ह' का प्रयोग होता है । उदा० मुख-मुह, मेघ-मेह, नाथ-नाह, बधिर-पहिर, सफल-सहल, शोभा-सोहा ।
(३) स्वरसे परे आये हुए असंयुक्त ट, ठ, ड, न, प, फ, और ब के स्थानमें अनुक्रमसे ड, ढ, ल, ण, व, भ और व का प्रयोग होना है । उदा०-घट-घढ, पीट-पीढ, गुड-गुल, गमनगमण, कूप-कृव, रेफ-भ, अलावु-अलावु ।
(४) शब्दके आदिके 'न' के स्थानमें 'ण'का प्रयोग विकल्पसे होता है । उदा. नगर-नयर, गयर ।
(५) शब्दके आदिमें आये हुने 'य' के स्थानमें 'ज' का प्रयोग होता है । उदा० यम-जम ।
(६) अनुस्वारसे परे आये हुने 'ह' के स्थानमें 'घ' का प्रयोग होता है । उदा० सिंह-सिंघ ।
(७) [अ] प्राकृतमें क्ष, प्क और स्क के स्थानमें ख का; त्यके स्थानमें च का; छ, र्य और स्य के स्थानमें ज का; ध्य और ह्याके स्थानमें क्ष का त के स्थानमें ट का;" स्त के स्थानमें थ का;२
९. कितनेही शब्दोंमें क्ष का छ भी होता है। उदा० क्षणखण (समय), छण (उत्सव); क्षमा-खमा, छमा (पृथिवी)। कितनेही शब्दोंमें क्ष का झ भी होता है । उदा० क्षीण-झीण; क्षर-झर् ।
१०. अपवादः-चैत्य-चेइय। ११. अपवादः-मुहूर्त-मुहुत्त, कीर्ति-कित्ति, धूर्त-धुत्त इत्यादि। १२. अपवादः-समस्त-समत्त, स्तंव-तव ।
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