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पुरिसबसणी
( पुरुष द्वेषिणी )
पुरुषों के प्रति द्वेष करने
वाली 1
पुष्वरत्तावरत
-
( पूर्व रात्र -
अपररात्र) रात्री का पूर्व
का
भाग और रात्री पिछला भाग [ शीघ्र उच्चारण के कारण अपर का
'र' प्राकृत में चला गया है ] |
पेच्च :- ( प्रेत्य ) परलोक । पेच्छणघरएसु जिसमें देखने की चीजें
( प्रेक्षणगृहेषु )
लगीं हों, ऐसे घरों में - नाटकगृहों में ।
पोल
----
पोचडे --- (दे० ) पोचा । पोत्थकम्मजक्खा
-
[ २३४ ]
―
यक्षाः ) मसाले से बनाई हुई यक्ष की मूर्ति जैसे
जट ।
पोलंडेड - (प्रोल्लण्डयति) वारचार टकराता है ।
( पुस्तकर्म
(दे० ) पहोळा [ गूज -
राती 'पोला' शब्द का
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इससे खास
सम्बन्ध है ।
संस्कृत के विस्तीर्णता
सूचक 'पृथुल' शब्द का
प्राकृत रूप ' पिहुल' होता है । संभव है यह
' पिहुल' ही शीघ्र उच्चार
करने से
पोल्ल शब्द
बना हो ] ।
पोसहं - देखो टि० ४८ ।
―
फलगं
―
तक्ता-पाटी ।
फासा
फलतेहि - ( फलकैः ) ढाल से ।
फंदेइ
( स्पन्दयति ) थोडा
ANAND
- ( फलकं ) लिखने का
हिलाता है ।
www
'
बइलं -
प्रकार के दुःख ।
फासुएस णिज्जेण
४९ ।
को ।
बलियतरायं
गाढ !
( स्पर्शाः ) अनेक
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देखो टि०
( वलिवर्दम् ) बैल
( बलिकतरम् )
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