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आस मेह - ( अश्वमेध ) अश्वमेध |
आसवसंवर"
(आस्रव संवर
निर्जरा-क्रिया अधिकरण
बन्ध - मोक्ष - कुशलः ) मनवचन और काय की शुभा
शुभ प्रवृत्ति
उक्त प्रवृत्ति
का निरोध
जिसके द्वारा
कर्मों का नाश हो ऐसी
किया- - ये सब के आधार
-
[ २१३ ]
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भूत जीव - और वन्ध और मोक्ष इन तत्वों में
कुशल | आसंघो --- (आसंगः) आसक्ति ।
आसाएमाणी - ( आस्वादमाना ) स्वाद लेती हुई ।
आसारेति -- (आसारयति ) इधर से उधर के जाता है ।
आसित्तसंम ०
(आसिक्त
संमार्जित - उपलिप्तम् ) सींचा हुआ, साफ किया हुआ और लींपा हुआ ।
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आसुपने - ( आशुप्रज्ञः ) हाजर - जवावी |
आसुरुते कोधाविष्ट ।
आसे - ( अश्वः ) घोढा ।
आहारे - ( आधारः ) आधार
आहुणिय कर के ।
इब्भो
आहेवच्चं - (आधिपत्यम्) अधि
पतिपणा
( आसूर्ययुक्तः )
।
( आधूय ) हिला
( इभ्यः ) धनवान | [ विशेष के लिये देखो 'भ. म. नी धर्मकथाओं '
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का कोश ] । इय - ( इति ) ऐसा ।
हापू
क. १।
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देखो टि. २७,
उइन्नो - ( अवतीर्णः ) उतरा । उउयकुसुम - (ऋतुजकुसुम
कृत - चामरकर्णपूरपरिमण्डि - ताभिरामः ) ऋतुओं के फूलों से बनाये हुए चामर और कर्णपूर से परिमंडित
तथा सुंदर ।
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