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इस कारण से सूत्ररटी लोगों को चाहिए कि वे अर्थ के संपादन में प्रबल प्रयत्न करें। क्योंकि कितनेक मात्र सूत्ररटी, अकुशल व पृष्ट आचार्य अर्थ में गरवढ कर के उन महाशास्त्र की विडंबना करते हैं ॥ ६५ ॥
शास्त्र को समजने में जो ठीक निश्चित नहीं है ऐसा कोई आचार्य, प्रवाहगामी लोगों में बहुश्रुतपणे की ख्याति प्राप्त करता हो और उनका शिष्यसमुदाय भी ठीक ठीक हो तो वह आचार्य शास्त्र का प्रचारक नहीं है किन्तु शास्त्र का शन्नु है ॥ ६६ ॥ . व्रत और नियमो में ही जो शुष्क भाव से रत रहेते हैं और स्वसिद्धान्त को समजने में सर्वथा उपेक्षा रखते हैं ऐसे कर्मकाण्डी लोक, उन व्रत व नियमों का शुद्ध उद्देश को ही नहीं जान पायें हैं ॥ ६७ ॥
जो ज्ञान, आचार में नहीं लाया जाता है वह निष्फल है आर जो आचार में विवेक नहीं होता है वह आचारकर्मकाण्ड -भी निष्फल है अर्थात् ज्ञानरहित कोरा कर्मकाण्ड व कर्मकाण्डरहित कोरी विद्या यह दोनों एकान्त है। इस एकान्त --~~ कदाग्रह - मार्ग से जन्म और मृत्यु के फेरे नहीं मीट सकते ॥ ६८ ॥
जिसके बिना लोगों का व्यवहार भी सर्वथा नहीं हो सकता है ऐसा सर्वभुवनों का एकमात्र गुरु अनेकांलवाद - स्याद्वाद--को नमस्कार ॥ ६९ ॥
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