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सारथी और बैठनेवाले योद्धा से रहित सिर्फ मुशल सहित एक रथ हजारों मनुष्यों को कुचलता हुआ जिस संग्राम में दौडता है उस संग्राम का नाम रयमुशलसंग्राम है।"
५५. सम्मइगाहा-सन्मतिगाथाः - सन्मातितर्कप्रकरणकी गाथायें । ..
उन गाथाओं का भावानुवाद नीचे दिया जाता है:__“किसी भी प्रकार के मानव की मनोवृत्ति, किसी भी. प्रकार के तत्वजान व कर्मकाण्ड वा किसी भी प्रकार का सूक्ष्म वा स्थूल पदार्थ - इन सवों का स्वरूप को ठीक ठीक समझने के लिए उनके संबंध की निम्नलिखित बातें ध्यान में अवश्य रखनी चाहिए:
__ मूळ कारण, उत्पत्तिस्थान, समय, स्वभाव, होनेवाले व होनहार परिवर्तन, आधारस्थल, परिस्थिति -- आसपास के संयोग और भेदप्रभेद ॥ ६ ॥
शास्त्र की भक्तिमात्र से कोई भी भक्त, उनके स्वरूप को ठीक ठीक नहि पा सकता है, शायद उस प्रकार से भी कोई भक्त, शास्त्रज्ञ होने का साहस दिखलावे तो भी उनसे उस ज्ञात शास्त्र का विवरण करने की योग्यता तो आती ही नहीं ॥ ६३ ॥
अर्थ का स्थान सूत्र-शास्त्र-है यह तो ठीक है, परन्तु इस कारण से मात्र सूत्र को रट लेने से अर्थ का भान नहीं होता । अर्थ का ज्ञान तो गूढ नयवाद की वास्तविक समज पर निर्भर है ॥ ६ ॥
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