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लिख कर अक्षरोंका छेदना, लिखने और पढनेमें भ्रांति होनी, जैसा लिखा है वैसा ही वांचना, अनुवाद और अनुवादककी अव्यवस्था । इसके उपरांत दूसरी भाषा बोलनेवालोंका संसर्ग, भौगोलिक परिस्थिति, शारीरिक अस्वास्थ्यके कारण उच्चारणके स्यानोमें विकृति, राज्यक्रांति, शुद्ध उच्चारोंकी उपेक्षा, व्याकरणका अज्ञान इत्यादि अनेक हैं । इस 'जिनागमकथासंग्रह' में आप और लौकिक दोनों प्राकृतके पाब्दप्रयोग हैं । उनमेंसे जो शब्द समझनेमें कठिन प्रतीत होते हैं उनकी टिप्पणी दी जायगी। सामान्य संस्कृत पढा हुआ भी इन कथाओंमें प्रवेश कर सके इस लिये यहां पर प्राकृत भाषाका सामान्य व्याकरण दिया जाता है । जिससे प्रवेशक, प्राकृत और संस्कृतके उच्चारभेद भलीमांति समझ सकेगा।
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