________________
जन्नस्स समुप्पत्ती सुणिऊण जन्नवयणं, पुच्छइ मगहाहिवो मुणिपसत्यं । जन्नस्स समुप्पत्ती, कहेहि भयवं परिफुडं मे ॥ ६ ॥ अह माणिउं पयत्तो, अणयारो सुमहुराए वाणीए । आसि अओज्झाहिवई, इक्खागुकुलुब्भवो राया ॥ ७ ॥ नामण महासत्तो, अजिओ भज्जा य तस्स सुरकन्ता । पुत्तो य वसुकुमारो, गुरुसेवाउज्जयमईओ ॥ ८॥ खीरकयम्बो चि गुरू, सत्थिमई हवइ तस्स वरमहिला । पुस्तो विहु पन्वयओ, नारयविपो हवइ सीसो ॥९॥ अह अन्नया कयाई, सत्थं आरण्णयं वणुद्देसे । कुणइ तओ अज्झयणं, सीससमग्गो उवज्झाओ॥ १०॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org