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[ १११ ]
“ इमे चिभडिया ण खाइया तुमे । "
धुत्तेण भण्णति" जइ न खाइया चिन्मडिया अग्घवेह तुमं । "
तओ अग्घावसु कइया आगया, पासंति खाइया चिन्भडिया, ताहे कइया भणति " को एया खइया चिन्मडिया किणइ ? "
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तओ करणे ववहारो जाओ। 'खइय' त्ति जिओ सागडिओ | ताहं धुत्तेण मोदगं मग्गिज्जति । अच्चाइओ सागडिओ, जूत्तिकरा ओलग्गिया, ते तुट्ठा पुच्छति, तो जहावत्तं सव्वं कहेति । एवं कहिते तेहिं उत्तरं सिक्खाविओ ।
तओ तेण खुड्डुयं मोदगं णगरदारे ठवित्ता, भणिओ मोदगो - " जाहि, जाहि मोदग!" स मोदगो न णीसरइ नगरदारेण ।
तो तेण सागडिएण सक्खिणो वृत्ता - "मए तुम्हाकं समक्खं पडिन्नायं ' जं अहं जिओ भविस्सामि तो सो मोदगो मया दायन्त्रो जो नगरहारेण न णीसरइ, ' एसो न णीसरइ ।" ततो जिओ धुत्तो ।
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( दशवैकालिकवृत्तिः )
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