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________________ २. मदिरा का करुण अंजाम (परिणाम) कौन अनजान होगा मदिरा से होने वाली वरबादी से? युगों-युगों से मनुष्य नशीले पदार्थों के चंगुल में फँसता जा रहा है। और अपने-पराये के प्राणों की भी परवाह किये बिना अपनी बुरी आदतों की पूर्ति करने के लिए कानूनी व गैर कानूनी (अवैध) शराब के ठेकों की ओर दौड़ता चला जाता है। प्राचीन युग में श्रीकृष्ण के परिवार में शराब (मदिरा) से जो भयंकर परिणाम हुए उसकी रोचक कहानी हमें बहुत कुछ कह जाती है। श्रीकृष्ण की नगरी द्वारका, स्वर्ग की अमरापुरी नगरी के समान थी। कहा जाता है कि १२ (बारह) योजन के क्षेत्रफल वाली देव-निर्मित द्वारका नगरी के चारों तरफ चाँदी का गढ़ (किला) था और उसके ऊपर स्थित सोने के कंगुरे मेरु-समान सुशोभित थे। एक बार नेमि प्रभु द्वारका में पधारे। देशना (प्रवचन) सुनने गये श्रीकृष्ण ने उनसे एक प्रश्न पूछा-“प्रभु ! द्वारका नगरी, सम्पूर्ण (सारे) यदुवंश और मेरा अन्त किस प्रकार होगा?" श्री नेमिनाथ ने उत्तर दिया-हे कृष्ण ! द्वारका सहित सम्पूर्ण (सारे) यदुवंश का नाश, मरकर देव बने द्वैपायन नामक ऋषि द्वारा अग्नि से होगा। और तुम्हारी मृत्यु तुम्हारे ही भाई जराकुमार के हाथों होगी।" वसुदेव के तीन रानियों से उत्पन्न तीन पुत्र थे। देवकी से श्रीकृष्ण, रोहिणी से बलदेव और जरा रानी से जराकुमार। वासुदेव के और भी अनेक रानियाँ थीं। शांब-प्रद्युम्न आदि साढ़े तीन करोड़ यदुवंशीय राजकुमारों एवं अन्य करोड़ों यदु जनों से युक्त परिवार में बलराम एवं कृष्ण आपस में अत्यन्त स्नेह व एकता से रहते थे। - "मेरे हाथ से यदुवंश के आधार-स्तम्भ श्रीकृष्ण की मृत्यु नहीं होनी चाहिए। यह सोचकर जराकुमार धनुष-बाण लेकर वन में निवास करने चले गये। द्वैपायन ऋषि भी अपने हाथों से होने वाले "द्वारका एवं यदुवंश के नाश" की बात प्रभु के ★★ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002740
Book TitleAnant Akash me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmadarshanvijay
PublisherDiwakar Prakashan
Publication Year
Total Pages66
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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