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अरे ! माँसाहारिओं !!
मुँह के अन्दर के छाले (नासूर) की पीड़ा भी सही नहीं जा सकती काँटा निकलने के बाद भी उसकी पीड़ा असहनीय होती है। तब क्रूरता से कत्ल किये गये प्राणियों के माँस का भक्षण करके उनकी आहे और कराहें क्या जीवन को वास्तव में सुखमय बना सकती हैं। स्मरण रहे कि प्राण सबको प्यारे होते हैं।
सोचो... !! भविष्य तो भयंकर है ही, लेकिन वर्तमान जीवन को भी स्वास्थ्य के लिए भारी परेशानी में डाल रहे हों
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