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________________ से सुनकर, द्वारका के बाहर स्थित वन में तपस्या करने लगे। चूँकि द्वारका और यादवों के प्रति उनको स्नेह-भाव था, जिसके कारण अपने हाथों द्वारका-विनाश उन्हें स्वीकार न था । मुख श्रीकृष्ण ने नेमि प्रभु को प्रणाम करके द्वारका नगरी में प्रवेश किया और इस प्रकार घोषणा कराई - "प्रभु नेमिनाथ के वचनानुसार मदिरा से उन्मत्त यदु कुमारों द्वारा अत्यधिक अपमानित हुए द्वैपायन ऋषि द्वारा इस नगरी को मरणान्त उपसर्ग होने वाला है। इसलिए नगर के बाहर पर्वत के पास कदम्ब वन में कादम्बरी गुफा के अन्दर स्थित विशाल शिला-कुण्डों में मदिरा आदि मादक पदार्थों का त्याग करना चाहिए।" यह सुनकर सभी नगरजनों ने मदिरा का पूरा भण्डार उन शिला कुण्डों में उलट दिया। छः माह बाद अनेक वृक्षों के समूह से झड़ते पुष्पों से कुण्डों में पड़ी सारी मदिरा पक्वरस युक्त (स्वादिष्ट) बन गई। एक बार शांब (कुमार) का शिकारी घूमते-घूमते उस जंगल में आ पहुँचा। और तृष्णा (प्यास) से पीड़ित उसने उस मदिरा का पान किया। मदिरा के मधुर स्वाद से तृप्त होकर उसने कुछ मदिरा मशक में डालकर शांब कुमार को दी । “इतनी स्वादिष्ट मदिरा तुम कहाँ से ले आये? " - शांब कुमार के इस प्रश्न के उत्तर में शिकारी ने बताया कि मदिरा उसने कादम्बरी के कुण्ड से प्राप्त की थी। अनेक स्वच्छंदी यदु कुमारों ने शांब के साथ वहाँ जाकर उस मदिरा का तब तक उपभोग किया जब तक कि वे पूर्ण रूप से तृप्त न हो जायें। तत्पश्चात् पागलों (विक्षिप्तों) की तरह उन्मत्त होकर वे पर्वत पर चढ़कर क्रीड़ाए करने लगे। तभी उन्होंने तपस्या में लीन द्वैपायन ऋषि को देखा। ऋषि को देखते ही उन्होंने सोचा- “यही हमारी नगरी का विनाशक बनने वाला है। किन्तु विनाशक बनने से पहले ही हम इसका नाश कर देंगे। जिससे द्वारका-विनाश का प्रश्न ही उत्पन्न नहीं होगा।" यह सोचकर द्वैपायन का अपमान करने के अलावा उन लोगों ने उनको लात-मुक्के और डण्डों से मारना शुरू कर दिया। और अन्त में द्वैपायन को अधमरा करके पहाड़ से नीचे जमीन पर पटक दिया। एक चरवाहे ने इस घटना की सूचना श्रीकृष्ण को दी। यह सुनकर दुःखी कृष्ण, बलराम के साथ द्वैपायन के पास दौड चले आये और उनके क्रोध को शान्त करने के लिए मधुर वचनों से उनसे क्षमा माँगते हुआ कहा- "हे महर्षि ! मदिरा से उन्मत्त हुए अविवेकी एवं अज्ञानी मेरे पुत्रों ने आपका जो अपमान किया है, उसके लिए हम क्षमा चाहते हैं। कृपया हमें Jain Education International ★ ४ ★ For Private & Personal Use Only ad www.jainelibrary.org
SR No.002740
Book TitleAnant Akash me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmadarshanvijay
PublisherDiwakar Prakashan
Publication Year
Total Pages66
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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