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राजधानीके चतुर्थ द्वारकी ओर....
स्वप्नलोकसे सत्यलोक की और... रंगके रसिया... गोरी ! तुझे इतना कौनसा दु:ख ? मित्रयुगल : पंचपहाड़की स्पर्शनामें मशगूल... नामी चोरकी गुफामें... गुणीजन मन वसिया... भोगनिष्ठ बनता है... ब्रह्मनिष्ठ : रोमांचक धटना "राजगृह' नाम कैसे हुआ...
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