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________________ सुधर्मास्वामीने त्वरित निर्णय ले लिया । और सभी साधुओंको आज शामको ही विहार करने का आदेश दिया। अपने निमित्तसे शासन-मालिन्य होता हो वहाँ रहना नही ऐसी इनकी समझ थी। जिसने यह तीनों प्रतिज्ञाको सहर्ष स्वीकारा है, फिर । सोनामहोरोंके ढिग लेने नहीं आये इनकी प्रशंसा करनेकीज निंदा कर रहे हो? कितना बडा इन्होंने त्याग किया है ? | त्यागिओंकी निंदा करके नरकमें जाना है...? खबरदार.. अब कभी ऐसा अवर्णवाद किया तो...! पूज्यश्रीके विहारकी बात महाबुद्धि-निधान अभयकुमारके कानों तक आयी.... वे तुरंत सुधर्मास्वामीके पास पहुँचे और इतनी जल्दीसे विहारके निर्णयका कारण पुछा.... सुधर्मास्वामीने लकड़हारे की दीक्षा और इसके लोकापवादका सर्व वृत्तांत (कह) सुनाया । अभयकुमारने पूज्यश्रीको विनंती की.... भगवन् ! मात्र एक दिनके लिए रुक जाओ, सब अच्छा होगा। मेदनी तो धीरे धीरे (वहाँसे) चल पड़ी... पश्चात् नग । निंदनीय वातावरण बंद हो गया । संजू तो खुश हो।। अभयकुमारकी बुद्धिपर.../ राजू बोला : संजू ! बुद्धि लक्ष्मी और नीरोगी काया । बहुतको मीली है । परंतु इसका सदुपयोग करनेव । अभयकुमार जैसे कोई विरल ही होते हैं। यह तीनों चीजों सन्मार्गकी ओर न ले जावे तो पतन कराये बिना न रहे। सुधर्मास्वामीने अभयकुमारकी बात मान्य रखी। विहार बंध रहा। दूसरे दिन अभयकुमारने राजसेवकों द्वारा पूरे नगरमें घोषणा करायी। संजय!''गाँव वहाँ गंदकी" पांचों अंगुली सरीखीन होती हैं... अपनी राजधानीमें अनेक नररत्ने हुए हैं.... मम्मण, कालसौरिक जैसे कोई-कोई कोयले भी हुए हैं. नगरजनों! सुनो......सुनो....सुनो, नगर के चार रस्ते पर सोनामहोरोंके ३ (तीन) बड़े ढिग जाहिरमें रखा जायेगा और आज शामके समय वह विजेताको भेट दिया जायेगा। सबको आमंत्रण है। इतना बोलते-बोलते तो दोनों संजूके घरके दरवाजेत आ पहुँचे । अंधेरा तो हो चुका था। दोनों मित्रोंको रात्रिभोज का त्याग था। इसीलिए नगरयात्रा दरम्यान जो भी शुद्ध नास मिलता इससे चला लेते... इनके मन नगरीकी परिकम्मा जितना महत्त्व था इतना भोजनका नहीं था। और शाम तो दौडती आयी। सोनामहोरोंकी चारों ओर मानवमेदनी जम गई। सभी अगासीयाँ और अटारियाँ जनसमूहसे भर गई। सबकी नजर सोनामहोरकी तरफ थी। इन सोनामहोरोंका विजेता कौन बनेगा, इसकी ओर ही सबका ध्यान केन्द्रित बना था। अलग होते संजूने राजूको पूछ लिया- राजू! राजधा की अब कीतनी यात्रा बाकी है...? अब अभयकुमार सबके बीचमें आ गये । और स्वयं घोषणा करते हुए कहा, जो व्यक्ति जीवन तक, कच्चे पानीको, अग्निको और स्त्रीको-स्पर्श भी नही करे, इसको यह तीनों स्वर्ण के ढिग भेट दिये जायेंगे...यह ताजा समाचार सुनते ही जनतामें मौन छा गया। मुनि बने कठियारेका अवर्णवाद करनेवाले मनुष्यों के मुँह ही बंद हो गये। बाप रे... स्त्रीको,पानीको और अग्निको स्पर्श किये बिना क्या जी सकेंगे ? जनमेदनीमें गुनगुनाहट शुरु हो गई। राजू बोला : संजू राजगृहीके लगभग घटनास्थलों तो हम स्पर्श कर लीए... बाकी है मात्र राजगृहीके विख्य पंचपहाड़ और इनकी स्पर्शना । कल हमें नगरीके चत । महाद्वारकी ओर जाना है - कल जल्दी उठना होगा... चला जाना असंभव है। क्योंकि पूरा रास्ता काटकर नगरके बा रहे यह पंचपहाड़का चढाई भी करनी होगी। क्योंकि वहाँ। स्तूप और मंदिरें भी महामुनियों की दिगंतव्यापी या कीर्ति अकबंध रखकर खड़े हैं। इस लिए कल भौंर होते ही घर आ जाऊंगा। इस तरफ ही अपनी यात्राका प्रारंभ होगा आखिरमें अभयकुमारने मौन तोड़ा और निंदक लोगोंको उद्देश्यकर कहा- तुम लोगोंको कोई धंधा ही नहीं। है ताकत इसमेंसे कोई एक भी प्रतिज्ञा स्वीकारनेकी? जो नहीं, तो दोनों अपने अपने घर चले। परिश्रमके कारण घर जाब तुरंत ही गहरी नींद में सो गये... एक अलग ही दुनियामें इस दुनियाका नाम था... स्वप्नलोक। 46 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002739
Book TitleEk Safar Rajdhani ka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmadarshanvijay
PublisherDiwakar Prakashan
Publication Year
Total Pages72
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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