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________________ O Darourkestareer स्वप्नलोकसे सत्यलोककी और... दलोंसे भरा आकाशी वातावरण राजगृहीको अनोखी रमणीयता दे रहा था । बाकलकी ऊष्माने आज शीत लहरोंको फैलानेमें अच्छा साथ दिया। राजगृहीकी पर्वतीय हारमाला बाल TA संग मैत्री जोड़नेके नाते जैसे कि बादल गिरि-शृंगोंको चुंबन करके आगे बढ़ रहे थे। राजधानीकी आमजन प्रकृतिकी गोदमें अभी मीठी नींद ले रही थी। स्वप्नलोककी दुनियामेंसे जागृत राजू सत्यलोककी खा के लिए अरुणोदय हो इसके पहले ही संजूके घरकी ओर चल पडा । संजू भी झटपट प्रात:कार्य पूर्णकर राजूकी रा हवेलीके नीचे मार्ग पर खड़ा था । संजूने राजूको प्रणाम किया । राजूने संजूको अंजलि की। दोनों अद्वितीय घटनाके आलय समान पवित्र पंचपहाड़की स्पर्शना हेतु चल पड़े। रास्ता बहुत दूर था । प्रातः समः चौराहे पर पहुँचे पश्चात् एक टाँगागाडी मिल गई । तबड़क... तबड़क... तबड़क... त... ब... ड... क... मित्रद्वयका र जनता शून्य मार्ग पर तेजी गतिमें दौड़ रहा था... कूकडे...कूक..कूक..मुर्गेकी मधुर आवाज़ जनताको जगा रही थी। का नववधूओंके घम्मर विलोणे संस्कृतिका साद दे रहे थे। मंदिरोंमें घंटारव शरू हो गये थे। मंद-मंद शीतल वायु नगरजनों जगाने में निष्फल बन रहा था । आज जो प्रथम घटना-स्थल पर जाना था वह रंगसभर और रसभर कहानी राजूने शुरू की... 48 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002739
Book TitleEk Safar Rajdhani ka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmadarshanvijay
PublisherDiwakar Prakashan
Publication Year
Total Pages72
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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