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Here is the English translation, preserving the Jain terms:
The Vinakadaka Dasajanna Rakula is shining, the Satsanyama Balasadhana is radiant, the Rikanavada Lidisaumilati is glowing, the Madivivarapahati Navatedena Danane Girisihanurati. This Navigi Havisahasrimadavasaranakhadhidarisaharusavadakalasamcalita Upavarsadoliya Dhyavadalu Samgiyasahalahalenam Khatatasukharavalenam Tanupatisakharikavisna/3/ Parinatanadeva Pakana Disajhyahana Khatramana Nanahasarapalida Kamalavai Matriyanmandathamene Jivanasiha. Madanihesibajalakananiyanrusamuhalida Yadisaradasadisamuali Usala Sminnipaggayana Gayayanilodanamadhya Umarivikariditarayathamayapi Syamgasisahayam Santasavasapapaloiyana. Tijayanaparicalanapara Mavihi Padidadi Sanapanihi Visadhamutanasaiviyaha Sasiya Usaradaronavisaddhana Jagatarahosamakkulapasa Padanulekpridana Suramathuyayaya Harimayamaya Puspayatebasi Nasadhyamahapurapatimahamahaparisugunalankara Mahakasyapaya Taviramadabasarahanumaniyamahakavajipasamahistakallayamata Pariccheda
The Vinakadaka Dasajanna Rakula is shining, the Satsanyama Balasadhana is radiant, the Rikanavada Lidisaumilati is glowing, the Madivivarapahati Navatedena Danane Girisihanurati. This Navigi Havisahasrimadavasaranakhadhidarisaharusavadakalasamcalita Upavarsadoliya Dhyavadalu Samgiyasahalahalenam Khatatasukharavalenam Tanupatisakharikavisna/3/ Parinatanadeva Pakana Disajhyahana Khatramana Nanahasarapalida Kamalavai Matriyanmandathamene Jivanasiha. Madanihesibajalakananiyanrusamuhalida Yadisaradasadisamuali Usala Sminnipaggayana Gayayanilodanamadhya Umarivikariditarayathamayapi Syamgasisahayam Santasavasapapaloiyana. Tijayanaparicalanapara Mavihi Padidadi Sanapanihi Visadhamutanasaiviyaha Sasiya Usaradaronavisaddhana Jagatarahosamakkulapasa Padanulekpridana Suramathuyayaya Harimayamaya Puspayatebasi Nasadhyamahapurapatimahamahaparisugunalankara Mahakasyapaya Taviramadabasarahanumaniyamahakavajipasamahistakallayamata Pariccheda
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विणकदकदशजन्नयरकुलंलजलनिदिविलशाल सत्संयमुबलशाधना रिकनिवडा लिदिसउमिलति मदिविवरफहति नवतेदेंणदणाणे गिरिसिहानुहति। इसनविगि हाविसहसिरिमादसवारणखधिदरीसहरूसविडकलसंचलिउपवर्षदोलियध्यव डलूलिउ संगीयसहालाहलेण खातातसुखरवलेण तणुप्तिसाखारियविष्णा/3/ परिणतणदेवपकण दीसझ्यहहन खत्रमण णणहसरफ़लिडकमलवायी मात्रियमंडठमेणिहे जिवाणसिंह। मदाणिहसिबजलकणणियरूसमुहलिड यादीसरदसदिसामुालिट उशाल
स्मिन्निपगड्यन गयंगणिलोडणमाध्य उमरिविकरिदिहरियायठमायापि स्यङसिसहायन संतासवसपापलोइयन। तिजयणपरिचालणपरमविहिपादितदि साणापनिहि विसधंमुतणसाइवियह सासिय उसरदरोणविसद्धाधना जगतरहोसमक्युलपस पदणुलेक्प्रिदाण सुरमथुययाया हरिम यमाय पुष्पयतेबासीणशाध्यमहापुरपतिमाहमहापरिसगुणालकारामहाकश्यपया तविरामदासबसरहाणुमणियमहाकवाजिपसमाहिसयकल्लायामतपरिछठसमय
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ताप से कड़कड़ करती है, जलचरसमूह को नष्ट करती है। समुद्र भी चमकता है, स्वेच्छा से उल्लसित होता पड़ा हो और दसों दिशाओं में व्याप्त दिखाई दे रहा हो। वह शीघ्र अयोध्या नगरी में पहुँचा, लोक राजा के
प्रांगण में नहीं समा सका। ऐरावत से उतरकर इन्द्र आया, और उसने माता-पिता को पुत्र दे दिया। ज्ञाननिधि पत्ता-नक्षत्र टूटते हैं, दिशाएँ मिलती हैं, महीविवर फूटते हैं, नेत्रों के लिए आनन्ददायक इन्द्र के नाचने उसने उनसे त्रिभुवन परिपालन की विधि संगृहीत की। चूँकि उनसे (जिनेन्द्र से) धर्म शोभित है, इसलिए पर गिरि-शिखर टूट जाते हैं ॥२०॥
इन्द्र ने उन्हें 'वृषभ' कहा।
घत्ता-जगभार में समर्थ, पुण्य से प्रशस्त, और अदीन पुत्र को लेकर सुन्दर स्थान पर बैठे हुए, देवों इस प्रकार नृत्य कर और श्री ऋषभ को लेकर इन्द्र अपने ऐरावत के कन्धे पर चढ़ गया। अप्सराओं और से संस्तुत-चरण माँ हर्षित होती है ॥२१॥ देवों के साथ वह चला। वह पवन से आन्दोलित ध्वजपटों से चंचल था। संगीत के कोलाहल के शब्द के साथ सुरबल के आकाश में दौड़ने पर तथा शरीर की कान्ति के भार से चन्द्रमा को निवारण करनेवाले इन्द्र
इस प्रकार त्रिषष्टि पुरुषगुणालंकारवाले महापुराण में, महाकवि पुष्पदन्त के ऊपर से आने पर नीचे स्थित नक्षत्रगण ऐसा दिखाई देता था मानो आकाशरूपी नदी में कमलवन खिला
द्वारा विरचित महाभव्य भरत द्वारा अनुमत इस महाकाव्य में हो मानो धरती का मोतीमण्डप हो, मानो जिनके स्नान के अन्त में मन्दाकिनी का श्वेत जलकणसमूह उछल
जिनजन्माभिषेक कल्याण नामक तीसरा परिच्छेद समाप्त हुआ॥३॥
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