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"The Lord's command, the teachings of the scriptures, and the guidance of the wise are all essential for a righteous life. But how can one follow them when faced with the temptations of the world? The greedy, the wicked, the sinful, and the fickle – they are like guests who come seeking only material wealth and pleasure. They are not interested in true virtue, which is the essence of a noble character.
I recognize the true virtues in those who uplift the downtrodden. I constantly remind myself of their example.
My heart is heavy with sorrow. My mind is like a spear piercing my head. I am in pain. You have come home, but what should I do now?
The king, contemplating the nature of wealth, summoned many rulers. They came, those who accumulated wealth through righteous means and whose minds were purified by the practice of yoga. They were illuminated by the examination of virtues. What can be done with an old, lustful man? What can be gained from scriptures heard by a sinful man? The seeds of life, imbued with shame, sprout eternally, covering the courtyards with the leaves of trees. What can be done with a son who is a degenerate? What can be achieved with right conduct without austerity? What can be gained from indifferent celestial beings and Kinnaras? Arrogant beauty has embraced those who are detached from worldly desires and do not cook. What can be done with those who follow the vows of the Shravakas? What can be done with the wealth of the greedy, which fills the holes in the earth?
The night is the moon, which shows compassion to all living beings. The night is free from lies that cause suffering to others. The night is illuminated by the absence of deceit. The woman is she who desires with her heart. Knowledge is that which sees everything. The kingdom is that which is given and never desired. The kingdom is not for those who have looked at another's wife. The kingdom is for those who have a home filled with wisdom. The wise are those who do not envy other wise men. The friend is one who stands by you in times of need. The friend is one who abstains from evening meals. The friend is one who has measured the distance to the directions and the city of Vidisha. Wealth is that which is enjoyed every day and then given to the poor and helpless."
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इरश्कादश्वकरमिलादिड्डहुपाविहुच पाडणमहाउतकदेखल्लासता गहिणिगलगा महाशिलयकामहो मङ्कमपतल्लियरिङमझदिवशसहप्रायनघतवणुपवाहाका कड़शा किकिश्थरकामण्णा किसक्पावधरिसखयणकलस्तष्पाकाषनवणासमयणावा किकिराणतणावधिविजाहरवरभिरणाणिविमणसमयक्निरणाघरणिलरधरिपूरयणाका लहदविण्यझारपण सारयणीजासासविफरियासार्कनाडाविश्वरिय साविज्ञानासपरुविधा यशतजमिवयजायतेखहनुहहि महरियातमिन्नपजविकरमस्मिानधाउच दिणिजदिणि मुरविधिमउविहरीयाणा यता सासिरिजागणणामांगुणतजेगय गुणों हिचिवस्याडरिमन गुणितमन्तमि पुणश्वममिाजेहिंदीणुनहरिमठावाश्यचितिविगएंक्षा विणगादकारिदियणाणाणिवशतेश्राश्यसचिलधमथण जनायकिणगणमुहमण तयणय रिकसण्यासिखं सामवायणनकरयं तरुपल्लवपिहियेपंगणय णवपासिरिदिणालिंगगना चतिनविण्यागिहिणो परिपालियसावविक्षिणो कमजर्मितसंततसक्ष्य यरताविरवाला सवामविया पादिनकर्दिविसमिहिमा पठणकलनुणिमछिटठ दिमनपिटाजोपडियन याघरसंगपमाणुजेहिंगदिन स्यणासायणाविरश्यदिदिसिविदिमागमणमाणकरण सागाव
बेर
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अपने मन में पीड़ित होता है कि हे दैव, क्या करूँ? लोभी, दुष्ट, पापी और चंचल वह अतिथि को उत्तर पत्ता-लक्ष्मी वही जो गुणों से नत हो, गुण वे जो गुणियों के साथ जाते हैं, चित्त वह जो पापरहित होता देता है
है। मैं गुणी उनको मानता हूँ, और बार-बार कहता हूँ कि जिनके द्वारा दीनों का उद्धार किया जाता है।"॥३॥ घत्ता-घरवाली गाँव गयी है, काम की इच्छा रखनेवाला मेरा मन जैसे भाले से भिद रहा है, मेरे सिर में पीड़ा है, तुम घर आये हो, बताओ मैं इस समय क्या करूं? ॥२॥
धन की गति का इस प्रकार विचार कर राजा ने अनेक राजाओं को बुलवाया। वे आये जो धर्मधन का
संचय करनेवाले और योगक्रिया समूह से शुद्ध मनवाले थे। जो गुणों की परीक्षा से प्रकाशित हैं, जिनमें बूढ़े कामुक व्यक्ति से क्या किया जा सकता है? पापी पुरुष के द्वारा सुने गये शास्त्र से क्या? लज्जा से सजीवरूप बीज नित्य अंकुरित हैं, जो वृक्षों के पल्लवों से आच्छादित हैं, ऐसे प्रांगण को, कि जिसका मानो शृन्य कुलीन पुत्र से क्या? बिना तप के सम्यक्त्व से क्या? उदासीन विद्याधर और किन्नर से क्या? घमण्डी बनश्री ने आलिंगन दिया है, जो विरक्त गृहस्थ नहीं राँधते, जो श्रावकों की व्रत विधि का परिपालन करनेवाले से क्या? धरणीतल के छिद्रों को सम्पूरित करनेवाले, लोभी के धन के बढ़ने से क्या? रात वही है जो चन्द्रमा हैं, जिन्होंने त्रसजीवों के प्रति दया की है, जो दूसरों को सन्ताप देनेवाली झूठ बात से विरत हैं, जिन्होंने नहीं से आलोकित है, स्त्री वही है जो हदय से चाहती हो, विद्या वही है जो सब कुछ देख लेती है। राज्य वही दिये गये को कभी भी इच्छा नहीं की, न जिन्होंने दूसरे की स्त्री को कभी देखा, जिन्होंने अपने गृह संग के है जिसमें विद्वान् जीवित रहता है, पण्डित वे ही हैं जो पण्डितों से ईष्यां नहीं करते, मित्र वे ही हैं जो संकट प्रमाणस्वरूप ग्रहण किया है, जो रात्रिभोजन की विरति से सहित हैं। जिसने दिशा और विदिशा में जाने का में दूर नहीं होते। धन वही है जो दिन-दिन भोगा जाये, और जो फिर दीन-विकलजनों को दिया जाये। परिमाण किया है,
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