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लामिलियरसाहक्षएसयदले मिलियउसोहकमाणीकरयले मिलियउसोहजणहरूलए। महिहरतारकानक्षलरल्लप
राधमुदीजगुपसंडनापरहेनुव रचिनपश्यननाउला या
तिमिरलहपयासवणाविणाकिस। विदाविठा सिरिरामासेविय
सळसर झुप्पटववियसाविला लाटांमदापुरापतिस
संदाहरिसगुणालकारमहाकत्सक नविनयमहासबसरहा
जमुमभिधमहाकावाइवालसर्प सपणामसोलहमापरिचय
संवाला बलिसंगकपि नवरतरतसशासकलपाडु
रितकेजी अर्यतसुद्धमथचंडमतिमही हंततचित्रनिगाव
ध्यागमविम्ममणे चलकवाल ललायिजादहा जाणव
E Mदार्णदणदो सिडिटसहरणेसीड वसाहहोलातासमचि ।।
विसरिसविरुद्ध विष्फरिददसण्ड सियाहद्ध कटिणटपा
णिपीडियकिवानवक्षमासियहदा सहकाण तिवलीतरगयरियतालासाहक्कडिलदाढाकराल अरुपलिताहरजिययित्रा १६८
वह राग (लाल रंग) महीधरों के तट और जल की लहरियों में दौड़ा। इस प्रकार 'राग' (रागभाव और लालिमा) छोड़ते हुए और गुणों से संयुक्त अरहन्त के समान सूर्य भी उन्नति को प्राप्त हुआ।
घत्ता-भरत के प्रसाद से अन्धकार को नष्ट करनेवाले सूर्य ने क्या नहीं दिखाया। लक्ष्मीरूपी रमा से सेवित स्वच्छ सरोवर और पुष्पों को विकसित कर दिया॥२६॥
सन्धि १७ दूत के आगमन और सूर्य के उदय होने पर, जिसकी चंचल तलवाररूपी जीभ लपलपा रही है उस नन्दानन्दन (बाहुबलि) से भरत रण में उसी प्रकार भिड़ गया जिस प्रकार सिंह से सिंह भिड़ जाता है।
इस प्रकार त्रेसठ महापुरुषों के गुण और अलंकारोंवाले इस महापुराण में महाकवि पुष्पदन्त द्वारा विरचित और महाभव्य भरत द्वारा अनुमत महाकाव्य का बाहुबलि-दूत-संप्रेषणवाला।
सोलहवाँ परिच्छेद समाप्त हुआ॥१६॥
तब युद्ध के लिए कृतमन, अद्वितीय विरुद्ध विस्फारित दाँतों से नीचे का ओठ चबाता हआ, अपने कठोरतर हाथ से कृपाण को पीटता हुआ, उद्धत मिली हुई आहत भौंहों के कोणवाला, त्रिबलि तरंग से भंगुरित भालवाला वह ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो कुटिल दाढ़ों से कराल (भयंकर) तथा अपनी लाल-लाल आँखों को आभा से दिगन्त को रंजित करनेवाला सिंह हो।
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