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कुकवि के काव्य की तरह चमत्कार उत्पन्न नहीं करता। मानो कोपरूषी आग का ज्वालामण्डल हो, मानो नगरलक्ष्मी ने कुण्डल पहन लिया हो। भरत के प्रताप से
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सहर कुकइदेकवण 3 चिम्मक्कर को वापल जालामंडलु एअरलकि एपरिहिनकुंड सरहण्यावे १५६
घाट किनारिंग हहास्तीनिका वारिगह गजघटा
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