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दुवई-पुणु चक्काणुमग्गलग्गंतमहाभडकरितुरंगयं।
चलियं साहणं पि रहभमियरहंगाहयभयंगयं ।।
वसहकरहखरवरवलइयभरु हरिखरहलियमलियवणतणतरु। मयगलमयजलपसमियरयमलु हसदिसिमिलियमणुयकयकलयलु। कसझसमुसलकुलिससरकश्यलु जणवयपयभरपणवियमहियलु। असिवरसलिलपवहधुयपरिहवु सतिलयविलयवलयखणखणखु । मसिणघुसिणरसमपुसियउयलु पवणपहयधयचयचियणहयतु ।
चक्र के पीछे लगे हुए महाभट, हाथी और तुरंग हैं जिसमें, ऐसी तथा रथों के घूमते हुए पहियों से सो को आहत करती हुई सेना चली। जिसमें बैलों, ऊँटों और खच्चरों द्वारा भार ढोया जा रहा है, घोड़ों के खुरों से वन के तृण-तरु चकनाचूर हो गये हैं, मदवाले गजों के मदजल से रजोमल शान्त हो गया है, दसों दिशाओं
में मिले हुए लोगों का कलकल शब्द हो रहा है, जिसके हाथ में कशा, झस, मूसल और तीर हैं, जिसने जनपदों के पदभार से धरती को झुका दिया है, असिवरों के जलप्रवाह में पराभव धो दिया गया है, तिलक सहित चूड़ियों के समूह का खन-खन शब्द हो रहा है, मसृण केशररस से उर-तल सुपोषित है, जिसमें पवन से आहत ध्वजसमूह से आकाश आच्छादित है.
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