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________________ घटा पर्व महायुद्ध प्रवरता, आकाशने देव को क देखते भये । यह युकी वाती सुन र राक्षसवंशी विद्याधरों के अधिति रजा सुरेश लंका धनी वानरवंशियों की सहायताको आए, राजा सुकेश किहकंध र अन्धको परम मित्र है मानो इनके मनोग्य पूर्ण करने को ही जाए हैं, जैसे भारत चक्रवर्तीक समय राजा अकम्पनकी पुत्री सुलोचनाके निमित्त जनकुमारका युद्ध भया तैसा यह युद्ध भया, यह स्त्री ही युद्धका मूल कारण है। विजयसिंह के घर राक्षवंशियों के महायुद्ध भया, तासमय किहकंध कन्याको लंग्या कर छोटे भाई ने सागसे विजय सिंह का सिर काटा, एक विजय सिंह के बिना उपकी सर्वसना विखर २.ईजोले एक आत्मा निा सर्व इंद्रियाक समूह विघटि जाहि, तव र जा अशनिवेग जिगार हका सा अपने पुत्रका मरण सुनकर मूक प्राप्त भया, अपनी स्त्रीयों के नत्रक जजस मीशा है वक्षस्थल बिका सो धनी बैरम मूलास प्रयो५का प्राप्त भया पुत्रके व.. शत्रुओ र साना साकार किया, उप समय उसका आकार लोक दखन सामानों प्रलय हाल उत्थामा मुख्य उसके आकार को धरे है । सर्व विद्याधराका लजाकर कन्यको घानगारा जान दोनों माई बाबरध्वज सुकेश सहित अशानिवेगस युद्ध करनेका निकसे । पर १२ म । शुद्ध जथा, गदर प्रांसे शक्तियों से, वाणोंसे, पासोंसे खड़गोंसे, महायुद्ध भया तहां पुत्र से उजीनीकधरूा अग्निकी ज्वाला उससे प्रज्वलित जो अशानवेग सो अंधकासुखा नया तर बड़े भाई शिह कन्धने विचारी कि मेरा भाई अंध्रक तो नायौवन है अर यह पानी बालिग मा बलवान है सो मैं भाईकी मदद करू। तब किहकन्ध आपा र श्रमिक हुन छान कितन्यके संमुख आया सो किहकन्धके अर विशुद्राहनके महायुद्ध करता उत २.मा अनिवेगा अन्धक को मारा सो अंधक पृथ्वी पर पड़ा जेा प्रभाता चन्द्रमा कार त हाच तैना अंधकका शरीर कांतिरहित होय गा अर किहकन्धन विद्या वाहन के कमल पर ला चलाई सो वह मूर्छित होय गिरा पुनः सचेत होय उसने वही शिला कह कय पर बातोति कन्यो वाय घूमने लगा सो लंकाकै धनीत सचेा किया अर किल्क किडलम्पुर प्राधे बहक वन हाष्ट उघाड़ देखा तो भाई नहीं, ना निकटवर्तिनों को पूछने लगा ---- मेरा भाई कहाँ है ? तब लोक नाच हाय हर राजीव में अंधरके मरणका विलाप हुवा सो विलाप सुन किकहन्ध भी विलाप करने लगा।रू न लह समान हुदा है चित्त जिसका बहु। देर तक भाई : गुलका चियन कर संशाअनुदान न भवा हाय ! भाई होते संत तू मरणको प्राप्त भवा मेरो दाग भुजा भाई जी मैं एक तुके न देखता तो महाव्याकुल होता सो अब तुम बिन प्राणों के। रचूना अथवा मा चित्त वज्रका है जो तेरा मरणकर भी शरीरको नहीं तजे है । हे बाल ! देश यह मुजाना अर छोटी अवस्थामें महावीर चेष्टा चितार चितार मुझको महा दुःख उपजे है इत्यादि महा दिलापकर भाईके स्नेहसे किकहन्ध खेद खिन्न भया तब लंकाक धनी सुकराने तथा बड़े बड़े पुरुषोंने हिन्धको बहुत समझाया जो धीर पुरुषों को यह रंज चेष्टा योग्य नहीं, यह क्षत्रियों का वीरकुल है तो महा साहस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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