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एकमोपन्दहवां वर्ग भई पतिके गुण अत्यन्त मधुर स्वर से गावती भई पतिके प्रसन्न करिवेमें उद्यमी है चित्त जिनका कोई एक पतिका मुख देखे हैं पर पतिके वचन सुनिवेकी है अभिलाषा जिनके, कोई एक निर्मल स्नेहकी धरणहारी पतिके तनुसे लिपटतर कुण्डलकर मंडित महासुन्दर कांतके कपोला को स्पर्शनी भई अर कोई एक मधुरभाषिणी पतिके चरण कमल अपने सिरसर मेलती भई भर कोई मृगनयनी उन्मादकी भरी विभ्रमर कटाक्षरूप जे कमल पुष्प तिनका सेहरा रचती भई जम्माई लेती पतिको वदन निरख अनेक चेप्टा करती भई।
या भांति यह उत्तम स्त्री पतिके प्रसन्न करिवेको अनेक यत्नकरें हैं परन्तु उनके यत्न अचेतन शरीर में निरर्थक भए वे समस्त राणी लक्ष्मण की स्त्री ऐसे कंपायमान हैं जैस कमलोंका वन पवन कर कंपायमान होय । नाथकी यह अवस्था होते संते स्त्रीयोंका मन अति व्याकुल भया संशयको प्राप्त भई कि क्षणमात्रमें यह क्या भया चितवनमें न आवे अर कथन में न श्रावे अर ऐसा खेदका कारण शोक उसे मनमें धरकर वे मुग्धा मोह की मारी पसर गई इन्द्रकी इन्द्राणी समान है चेष्टा जिनकी ऐसी वे राणी ताप कर तसायमान सूक गई न जानिए तिनको सन्दरता कहां जाती रही। यह वृत्तांत भीतर के लोकोंके मुखसे सुन श्रीरामचन्द्र मन्त्रियों कर मंडित महा संभ्रमके भरे भाई पै आए भीतर राजलोकमें गए लक्ष्मणका मुख प्रभातके चन्द्रमा समान मन्दकांति देखा जैसा तत्कालका वृक्ष मूनसे उखड पडा होय तेसा भाई को देखा ! मनमें चिंतवते भए यह क्या भया विना कारण भाई श्राज मोसे रूसा है यह सदा. आनन्द रूप आज क्यों विषादरूप होय रहा है स्नेहके भरे शीघ्र ही भाईके निकट जाय उसको उठाय उरसे लगाय मस्तक चूमते भर । दाहका मारा जो त उस समान हरिको निरख हलधर अंगसे लिपट गया यद्यपि जीतव्यता के चिंह रहित लक्ष्मण को देखा तथापि स्नेहके भरे राम उसे मूवा न जानते भए वक्र होय गई है ग्रीवा जिसकी शीतल होय गया है अंग जिसका जगतकी पागल ऐसी भुजा सो शिथिल होय गई सांसोवास नही नेत्रोंकी पलक लगे न विघटे । लक्ष्मणकी यह अवस्था देख राम खेदखिन्न होय कर पसेव से भर गए। यह दोनोंके नाथ राम दीन होय गये बारम्बार मूळ खाय पडे आंसुवो कर भर गए हैं नेत्र जिनके भाई के अंग निरखे इसके एक नख की भी रेखा न आई कि ऐसा यह महावली कौन कारणकर ऐसी अवस्थाको प्राप्त भया यह विचार करते संते भया है कंपायमान शरीर जिनका यद्यपि आप सर्व विद्याके निधान तथापि भाईके मोहकर विद्या विसर गई , मूर्खाका यत्न जानें ऐसे वैद्य बुलाए मंत्र औषधि प्रयोण कलाके पारगामी ऐसे वैद्य पाये सो जीवता होय तो कछु यत्न करें वे माथा धुन नीचे होय रहे तब राम निराश होय मूळ खाय पडे जैसे पक्की जड उखाड जाय अर वृक्ष गिरे पडे तसे आप पडे । मोतियोंके हार चन्दन कर मिश्रित जल ताडके बीजनावोंकी पवनकर रामको सचेत किया सब महा विह्वल होय विलाप करते भए शोक अर विपादकर महा पीडित राम पा सुवोंके प्रभाव कर अपना मुख आच्छादित करते भये आसुओं कर माच्छादित रामका मुख ऐसा भासे जैसा जल धारा कर आच्छादित चन्द्रमा
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