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________________ पभ-पुराण गुंजार कर समस्त वनस्पति फूले मदोन्मत होय समस्तलोक हर्षकै भरे शृंगार क्रीडा करें मुनिराज विषम वनमें विरजें आत्मस्वरूपका ध्यान करें उस ऋतुमें राम लक्ष्मण रणवास सहित अर समस्त लोकों सहित रमणीक वनमें तथा उपवनमें नानाप्रकारके रंग क्रीडा राग क्रीडा,जल क्रीडा,वन क्रीडा करते भए अर ग्रीष्मऋतुमें नदी सूके दावानल समान ज्वाला वरसै महामुनि गिरिक शिखर सूर्य के सन्मुख कायोत्सर्गधर तिष्ठे उसऋतु में राम लक्ष्मण थारामंडप महल में अथवा महारमणीक वनमें जहां अनेक जलयंत्र चन्दन कपूर आदि शीतल सुगंध सामिग्री वहां सुखसे विराजे हैं चमर दुरे हैं ताडके बीजना फिरे हैं निर्मल स्फटकको शिलापरं तिष्ठे हैं अगुरु चन्दनकर चर्चे जलकर श्रा तर ऐसे कमलदल तथा पुष्पोंके सांथरे पर तिष्ठे मनोहर निर्मल शीतल जल जिसमें लवग इलायची कपूर अनेक सुगंध द्रव्य उनकर महा सुगंध उसका पान करते लतावोंके मंडपोंमें विराजते नानाप्रकारकी सुन्दर कथा करते सारंग आदि अनेक राग सनते सुन्दर स्त्रीनि सहित उष्णऋतुको वलात्कार शीतकाल सम करते सुखसे पूर्ण करते भए, अर वर्षाऋतुमें योगीश्वर तरु तले तिष्ठते महातपकर अशुभ कर्मका क्षयकरें हैं विजुरी चमके हैं मेघकर अंधकार होयरहा है मयूर बोले हैं ढाहा उपाडती महाशब्द करती नदी बहे हैं उसऋतुमें दोनों भाई सुमेरुके शिखर समान ऊचे नाना मणिमई जे महल तिनमें महाश्रेष्ठ रंगीले वस्त्र पहिरे केशरके रंगकर लिप्त है अंग जिनका पर कृष्णागरुका धूप खेए रहे हैं महा सुन्दर स्त्रियोंके नेत्ररूप भ्रमकि कमल सारिखे इंद्र समान कीडा करते सखलों तिष्ठे अर शरदऋतुमें जल निर्मल होय चन्द्रमाकी किरण उज्ज्वल होय कमल फूलें हंस मनोहर शब्द करे मुनिराज वन पर्वत सरोवर नदी के तीर बैठे चिद्रूपका ध्यान करें उसऋतुमें राम लक्ष्मण राजलोकों सहित चांदनीसे वस्त्र आभूषण पहिरे सरिता सरोवरके तीर नामा विधि कीडा करते भए अर शीतऋतुमें योगीश्वर धर्म ध्यानको ध्यावते रात्रिमें नदी तालावोंके तट पै जहां अति शीत पडे वर्फ वरसे महा ठण्डी पवन बाजे तहां निश्चल तिष्ठे हैं महाप्रचण्ड शीत पवनकर वृक्ष दाहे मारे हैं अर सूर्यका तेज मन्द होय गया है ऐसी ऋतुमें राम लक्ष्मण महलोके भीतरले चौवारोंमें तिष्ठते मनवांछित पितास करते सुन्दर स्त्रिनके समूह सहित वीण मृदंग वांसुरी आदि अनेक वादित्रोंके शब्द कानोंको अमृत समान श्रवणकर मनको आल्हाद उपजावते दोनों वीर महाधीर देवोंसनान अर जिनके स्त्री देवांगना समान बाणीकर जीती है वीणाकी धनि जिन्होंने महापतिव्रता तिनकर आदरते संते पुण्यके प्रभावसे शीतकाल व्यतीत करते भए अद्भुत भोगोंकी सम्पदा कर मंडित वे पुरुषोत्तम प्रजाको आनन्दकारी दोनों भाई सुखसे तिष्ठे हैं। अथानन्तर गौतमस्वामी कहें हैं-हे श्रेणिक ! अब तू हनुमानका वृतांत सुन हनूमान पवनका पुत्र कर्णकुण्डल नगरमें पूर्व पुण्यके प्रभावसे देवनिके से सुख भोगवै जिसकी हजारों विद्याधर सेवा करें अर उत्तम क्रियाका धारक स्त्रियों सहित परिवार सहित अपनी इच्छाकर पृथिवीमें विहार करै श्रेष्ठ विमानमें आरूढ परग ऋद्धिकर मंडित महाशोभायमान सुन्दर वनों में देवनि समान क्रीडा कर सो बसंतका समय आया कामी जीवनको उन्मादका कारखबर समस्त Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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