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________________ ५६ तातै इनको तिहारे पीछे विदा करेंगे सो वह भोला कछू समझ नाही वर गया वाके गए पीछे मधुने चन्द्रमाको महलमें बुलाया अभिषेककर पटराणी पद दिया सब राणियोंके ऊपर करी। भोग कर अंब भरा है मन जिसका इसे राखे प्रापको इंद्र समान मानता भया अर वीर. सेनने सुनी कि चन्द्रमा मधुने राखी तब पागल होय कैयक दिन में मंडव नाना तापसका शिष्य होय पंचाग्नि तप करता भया अर एक दिन राजा मधु न्यायके आसन बैठा सो एक परदारारतका न्याय पाया सो राजा न्यायमें बहुन बेर लग बैठे रहें बहुरि मन्दिरमें गए तब चन्द्रभाने हंसकर कही महाराज आज घनी बेर क्यों लगी ? हम बंधा र खेद खिन्न भई आप भोजन करो तो पीछे भोजन करू, तब राजा मधुने की प्राज एक परनारीत हा त्याप श्राप पडा त ते देर लगी तब चन्द्रभाने हंसकर कही जो परस्त्रीरत होय उसकी बहुत मानता करनी तब राजाने क्रोधकर कही तुम यह क्या कही जे दुष्ट व्यभिचारी हैं तिनका निग्रह करना ते परस्त्रीका स्पर्श करें संभाषण करें वे पापी हैं सेवन करें तिनकी कहा बात ? जे ऐने कर्म करें तिनको महादण्ड दे नगरसे काढने जे अन्यायमार्गी हैं वे महा पापी नरकमें पडे हैं अर राजावोंके दण्ड योग्य हैं तिनका मान कहा ? ता राणी चन्द्रमा राजा को कहती भई-हे नृप, यह परदारा सेवन महा दोष है तो तुम आपको दण्ड क्यों न देशो तुमको परदारारत हो तो पौरोंको कहा दोष ? जैसा राजा तैमो प्रजा जहां राजा हिंसक होय अर व्यभिचारी होय तहां न्याय का ? तातें चुप होय रहो जिस जलकर वीज उगे अर जगत जीबै सो जलही जो जलाय मारे तो और शीतल करणहारा कौन ? ऐसे उलाहनाके वचन चन्द्राभाके सुन राजा कहता भया-हे देवी! तुम कहो हो सो ही सत्य है बारम्बार इसकी प्रशंसा करी पर कहा मैं पापी लक्ष्मीरूप पाश कर बेढा विषय रूप कीवमें फमा अब इस दोषसे कैसे छूट राजा ऐमा विचार करे है अर अयोध्याके सहस्त्राम्रनामा वनमें महासंघ सहित सिंहपाद मा मुनि पाए राजा सुनकर रणवास सहित अर लोकों सहित मुनिके दर्शनको गया, विधिपूर्वक तीन प्रदिक्षणा देय प्रणाम कर भूमिमें बैठा जि. नेन्द्रका धर्म श्रवणकर भोगोंसे विरक्त होय मनि भया अर राणी चन्द्रमा बडे राजाकी बेटी रूपकर अतुल्य सो राज विभूति तज आर्यिका भई दुर्गतिकी वेदनाका है अधिक भय जिसको अर मधु का भाई कैटभ राज को विनाशीक जान मह वायर मनि भगा । दोऊ माई महा तपस्वी पृथिवीमें विहार करते भए अर सकल स्वजन परजनके नत्रनिको आनन्दका कारण मधुका पुत्र कुलवर्धन अयोध्या का राज्य करता भया अर मधु सैकडों बरस व्रत पाल दर्शन ज्ञान चारित्र तप एही चार पाराधिना आराध समाधिमरण कर सोलयां अच्युत नामा स्वग वहां अच्युतेंद्र भया पर कैटभ पंद्रहवां पारण नामा स्वर्ग वहां पारणेन्द्र भया गौतम स्वामी कहे हैं-हे श्रेणिक, यह जिनशासनका प्रभाव जानों जो ऐसे अनाचारी भी अनाचारका त्यागकर अच्युरेंद्र पद पावें अथवा इन्द्र पदका कहा आश्चर्य ? जिनधर्मके प्रसादसे मोक्ष पावे मधु का जीव अच्युतंद्र था उसके समीप सोताका जीव प्रतेंद्र भया अर मधु नाव :गसे चकर श्रीकृष्ण की रुक्मिणी राणीके प्रद्युम्न नामा पुत्र कामदेव होय मोच Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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