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एकमोनो प
कड़ी सो ही प्रमाण वे दोनों भाई छोडे तब यह दोनों भाई मुनिको प्रदक्षिणा देय नमस्कारकर साधुका व्रत घरको असमर्थ तातें सम्यक्त्व सहित श्रावक व्रत आदरते भए जिनधर्मवी श्रद्धा धारक भए पर इनके माता पिता व्रत ले छोड़ते भए सो वे तो व्रतके योगसे पहिले नरक गये श्रर यह दोनों विपपुत्र निसंदेह जिनशासन रूप अमृतका पानकर हिंसाका मार्ग विष चत् तजने भए समाधिमरणकर पहिले स्वर्ग उत्कृष्ट देव भए वहांसे चयकर अयोध्या में समुद्र सेठ उसके धारणी स्त्री उसकी कुक्षिमें उपजे नेत्रोंको आनन्दकारी एकका नाम पूर्णभद्र दुजेका नाम कांचनभद्र सो श्रावकके व्रत धार पहिले स्वर्ग गए घर ब्राह्मणके भवके इनके माता पिता पापके योग से नरक गए हुते वे नरकसे निकल चांडाल अर कूकरी भए वे पूर्णभद्र अर कांचनभद्रके उपदेश से जिनधर्मका आराधन करते भए समाधिमरणकर सोमदेव द्विजका जीव चाण्डाल से नंदीश्वर द्वीपका अधिपति देव भया कर अग्निला ब्राह्मणीका जीव कूकरीसे अयोध्या के राजाकी पुत्री होय उस देवके उपदेशसे विवाहका त्यागकर आर्थिका होय उत्तम गति गई व दोनों परम्पराय मोक्ष पायेंगे |
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र पूर्णभद्र कांचनभद्रका जीव प्रथम स्वर्गसे चयकर अयोध्याका राजा हेम राणी अमरावती उसके मधु कैटभ नामा पुत्र जगतप्रसिद्ध भए जिनकी कोई जीत न सके महाप्रवल महारूपवान जिन्होंने यह समस्त पृथिवी वश करी सब राजा तिनके आधीन भए । भीम नाम राजा गढके वलकर इनकी आज्ञा न माने जैसे चमरेंद्र असुर कुमारनिका इन्द्र नन्दनवनको पाय प्रफुल्लित होंय है, वैसे वह अपने स्थानक के बल से प्रफुल्लित रहे अर एक वीरसेन नाम राजा बटपुरका धनी मधुकैटभका सेवक उसने मधु कैटभ हो विनती पत्र लिखा हे प्रभों, भीमरूप अग्निने मेरा देश रूप वन भस्म किया । तब मधु क्रोधकर बडी सेनासे भीम ऊपर चढा सो मार्ग में बटपुर जाय डेरा किए वीरसेनने सन्मुख जाय अतिभक्ति कर मिहमांनी करी उसके स्त्री चन्द्रभा चन्द्रमा समान है वदन जिसका सो चौरसेन मूर्खने उसके हाथ मधुका आरता कराया और उसहीके हाथ जिमाया चन्द्रमाने पति से घनी ही कही जो अपने घर में सुन्दर वस्तु होय सो राजाको न दिखा इये पतिने न मानी। राजा मधु चन्द्रमाको देख मोहित भया मनमें विचारी इस सहित विन्ध्याचल के वन का वास भला अर या बिना सब भूमिका राज्य भी भला नाहीं सो राजा अन्याय ऊपर आया तब मन्त्रीने समझाया अवार यह बात करोगे तो कार्य सिद्ध न होयगा श्रर राज्यभ्रष्ट राजा होयगा तब मन्त्रियों के कहेसे राजा वीरसेनको लार लेय भीम पर गया उसे युद्ध में जीत वशीभूत किया और और सत्र राजा वश किए बहुरि अयोध्या प्राय चन्द्रभाके लेयवेका उपाय चिन्तया सर्व राजा वसतकी क्रीडाके अर्थ स्त्री हित बुलाए अर वीरसेनको चन्द्रभा सहित बुलाया, तबहू चंद्राभाने कही कि मुझे मत लेवलो सो न मानी लेही आया, राजाने मास पर्यत वनमें कीडा करी अर राजा आए थे तिनको दान सन्मानकर स्त्रियों सहित विदा किए
र बीरसेनको कैयक दिन राखा अर वीरसेनको भी अति दान सन्मान कर विदा किया अर चन्द्रमा के निमित्त कही इनके निमित्त अद्भुत आभूषण बनवाए हैं सो अभी वन नहीं चुके हैं
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