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________________ पांचवां.पर्व जिनके, लंकाके स्वाम, महासुंदर, अस्त्रके धारक, स्वर्ग लोकके श्राये अनेक राजा भये । ते अपने पुत्रों को राज देय जगतसे उदास होय जिन दीक्षा धारि कई एक तो कम काट निर्वाणको गये, जो तीन लोकका शिखर है अर कई एक राजा एपके प्रभावसे प्रथम स्वर्गको आदि देय सर्वार्थसिद्धितक प्राप्त भये । इस भांति अनेक राजा ब्यतीत भये लंकाका अधिपति घनप्रभ उसकी राणी पद्माका पुत्र कीर्तिधाल प्रसिद्ध भया । अनेक विद्याधर जिसके आज्ञाकारी जैसे स्वर्गमें इन्द्र राज कर तेसे लंकामें कीर्तिधवल राज करता भया । इस भांति पूर्व भरमें किया जो तप उसके बलसे यह जीव देवगतिके तथा मनुष्य गतिके सुख भोगे है अर सर्व त्याग कर महाव्रत घर आठ कम भस्म कर सिद्ध होय है अर जे पापी जीव खोटे कर्मों आसक्त हैं ते इसी ही भवमें लोकनिन्द्य होय मरकर कुयोनिमें जाय हैं पर अनेक प्रकार दुःख भंग हैं ऐसा जान पापरूप अन्धकारके हरणेको सूर्य समान जो शुद्धीपयोग उसको भजो। इति श्रीरविषणाचार्यविरचित महापद्मपुराणकी भाषाटीकाविष राक्षसबंशका कथन जाबि है पांचा पर्व संपूर्ण भया ।। ५ ।। अथानन्तर गौतम स्वामी कहे हैं-राजा श्रेणिक ! यह राक्षसवंश पर विद्याधरोंके वंशका वृत्तांत तो तुझसे कहा अब बानरवंशियों का कथन सुन । स्वर्ग समान जो विजयागिरि उसकी दक्षिण श्रेणीम मेघपुर नामा नगर ऊंच महलांसे शोभित है, तहां विद्याधरोंका राजा रतीन्द्र पृथ्य पर प्रसिद्ध भोग सम्पदामें इन्द्र तुल्य ताके श्रीमती नामा राणी लक्ष्मी समान हुई । जिसके मुख की चांदनीसे सदा पूर्णमासी समान प्रकाश होय, तिनके श्रीकण्ठ नामा पुत्र भया जो शास्त्रमें प्रवीण जिसके नामको सुनकर विचक्षण पुरुष हर्ष तो पास होय उसके छोटी बहिन महामनोहर देवो नामा हुई जिसके नेत्र कानके वाण ही है। अथानन्तर रत्नपुर नामा नगर अति सुन्दर तहां पुष्पोत्तर नाम राजा विद्याधर महाबलवान उसके पद्माभा नाम पुगो देवांगना समान अर पद्मोत्तर नापा पुत्र महा गुणवान जिसके देखनसे अति आनन्द होय सो राजा पुष्पोत्तर अपने पुत्रके निमित्त राजा अतींद्रही पुत्री देवी को बहुत बार याचना करी तो हू श्रीकंठ भाईने अपनी बहिन लंकाके धनी कीधिवल को दीनी श्रर पद्मोचरको न दीनी । यह बात सुन राजा पुष्पोत्तरने अति कोप किया अर कहा कि देखो हममें कुछ दोष नाही, मेरा पुत्र कुरूप नहीं अर हमार उनके कुछ बैर भी नहीं तथापि मेरे पुत्रको श्रीकण्ठने अपनी बहिन न परणाई यह क्या युक किय ! ए दिन श्री.ण्ड चैत्यालगोंके बन्दनाके निमित्त सुमेरु पर्वत पर हिमानमें पैठ कर गए, विमान पवन समान वेगवाला अर अति मनोहर है । सो बन्दना कर आवते हुते मार्गमें पुष्पोत्तरकी पुत्री पद्माभाका राग सुन मन मोहित भया, गुरु समीप संगीतगृहमें वीण बजावती पद्माभा देखी। उसके रूपसमुद्रमं उसका मन मग्न होगग मनके काढियेको असमर्थ भया उसकी ओर देखता रहा और यह भी अति रूपवान, सो इसके देखनेसे वह भी मोहित भई । यह दोनों परस्पर प्रेमस्त कर बन्धे सो उसका भन जान श्रीक.. लंग । सो राजा पुष्पोत्तरके पुत्रको Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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