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पद्म-पुराण बुद्धि उपजी यह महापराक्रमी अर्धवक्री उपजा लक्ष्मण ने कोटि शिला उठाई और मुनिके वचन जिनशासनका कथन और भांति कैसे होय अर लक्ष्मण भी मनमें जानता भया कि ये बलभद्र नारायण उपजे, आप अति लज्जावान होय युद्धकी क्रियासे शिथिल भया ॥
अथानन्तर लक्ष्मण को शिथिल देख सिद्धार्थ नारदके कहेसे लक्ष्मणके समीप ग्राय कहता भया-वासुदेव तुमही हो जिनशासनके वचन सुमेरुमे अति निश्चल हैं यह कुमार जानकीके पुत्र हैं गर्भ में थे तब जानकीकों वनमें तजी यह तिहारे अंग हैं तातें इनपर चक्रादिक शस्त्र न चलें तब लक्ष्मण ने दोनों कुमारोंका वृत्तान्त सुन हर्षित होय हाथसे हथियार डार दिए यषतर दूर किया सीताके दुःखकर अश्रुपात डारने लगा अर नेत्र घूमने लगे राम शस्त्र डर वक्तर उतार मोहकर मूर्षित भए, चन्दनसे छींट सचेत किए तव स्नेहके भरे पुत्रनिके समीप चले, पुत्र रथसे उतर हाथ जोड सीस निवाय पिताके पायन पडे श्रीराम स्नेहकर द्रवीभूत भया है मन जिनका पुत्रों को उरसे लगाय शिलाप करते भए अांमुनि कर मेघकासा दिन किया । राम कहे हैं हाय पुत्र हो ! मैं मंदबुद्धि गर्भ में तिष्ठते तुमको सीता सहित भयंकर वनमें तजे, तिहारी माता निर्दोप हाय पुत्र हो ! मैं कोई विस्तीर्ण पुण्य कर तुम सारिखे पुत्र पाए सो उदर में तिष्ठते तुम भयंकर वनमें कष्टको प्राप्त भए, हाय वत्स हो जो यह वज्रघ वनमें न आवता तो तिहारा मुखरूप चन्द्रमा मैं कैसे देखता, हाय बालक हो ? इन अमोघ दिव्यास्त्रोंकर तुम न हते गर सो मेरे पुण्यके उदयकर देवोंने सहाय करी, हाय मेरे अंगज हो मेरे बाणनिकर बींधे तुम रणक्षेत्र में पडते तो न जानू जानकी क्या करती ? सब दुखोंमें घरसे काढने का बड़ा दुख है सो तिहारी माता महा गुणवन्नी ब्रतवंती पतिव्रता मैं बनमें तजी अर तुमसे पुत्र गर्भ में सो मैं यह काम बहुत बिना समझे किया अर जो कदाचित् तिहारा युद्ध में अन्यथा मोरभया होता तो मैं निश्चयसे जानू हूं शोकसे विह्वल जानकी न जीवती।
___या भांति रामने विलाप किया, बहुरि कुमार विनयकर लक्ष्मणको प्रणाम करते भए लक्ष्मण सीताके शोकसे विह्वल आंसू डारता स्नेहका भरा दोनों कुम रनिकी उरसे लगावता भया । शत्रुघ्न आदि यह वृत्तांत सुन वहां आए कुमार यथायोग्य विनय करते भए । ये उरमों लगाय मिले । परस्पर अति प्रीति उपनी दोनों सेनाके लोक अतिहित कर परस्पर मिले क्योंकि जब स्त्रामीकू स्नेह होय तब सेवकोंके भी होय । सीता पुत्रोंका माहात्म्य देख अति हर्षित होय विमानके मार्ग होय पीछे पुण्डरीकपुरमें गई अर भामण्डल विमानसे उतर स्नेहका भरा आंसू डारता भानजेसे मिला, अति हर्षित भया पर प्रीतिका भरा हनूमान उरसे लगाय मिला अर बारम्बार कहता भया-भली भई भली भई, अर विभीषण सुग्रीव विराधित सवही कुमारनिसे मिले, परस्पर हित संभाषण भया, भूमिगोचरी विद्याधर सबही मिले अर देवनिका आगम भया सवोंको आनन्द उपजा राम पुत्रनिको पाय कर अति आनन्दको प्राप्त भए, सकल पृथिवीके राज्यसे पुत्रोंका लाभ अधिक मानते भए, जो रामके हर्ष भया सो कहिवेमें न आवै अर विद्याधरी आकाशमें प्रानन्दसे नृत्य करती भई अर भूमिगोचरनिकी स्त्री पृथिवीपर नृत्य करती भई
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