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एकसौ तीनवां पर्ने
५२६ बदले जीव दिया चाहे हैं प्रचण्ड रणकी है खाज जिनके, सूर्य समान तेजको धरे संग्रामके धुरंधर होते भए॥ इति श्रीरविणेणाचार्यविरचित महापद्मपुराण संस्कृत ग्रन्थ, ताकी भाषा बचनिकाधि] लवणांकुशका
राम लक्ष्मणसे युद्ध वर्णन करनेवाला एकसौदोवां पर्व पर्ण भया ।। १०२॥
अथानन्तर गौतम स्वामी कहे हैं-हे श्रेणिक ! अब जो वृत्तान्त भया सो सुनो-अनगलवणके तो सारथी राजा वज्र अंघ अर मदनांकुराके राजा पृथु अर लक्ष्मणके विराधित अर रानके कृतांतवक्र । तब श्रीराम वज्रावर्त धनुषको चढायकर कृतांतवक्रसे कहते भए-अब तुम शीघ्रही शत्रुवोंपर रथ चलायो ढील न करो, तब वह कहता भया-हे देव ! देखो यह घोडे नरवीरके बाणनिकर जरजरे होय रहे हैं इनमें तेज नाहीं मानों निद्राको प्राप्त भए हैं यह तुरंग लोहूकी थाराकर धरतीको रंगे हैं मानों अपना अनुगग प्रभुको दिखाये हैं अर मेरी भुजा इसके वाण निकर भेदी गई है वक्तर टूट गया है तब श्रीराम कहते भए मेरा भी धनुष युद्ध कर्मरहित ऐसा होय गया है मानों चित्रामका धनुष है अर यह नपल भी कार्यरहित हाय गया हे अर दुनिवार जे शत्रुरूप गजराज तिनको अंकुश समान यह हल सो भी शिथिलताको भजे है, शत्रुके पक्षको भयंकर मेरे अमोघशस्त्र जिनकी सहस्र २ यक्ष रक्षा करें वे शिथिल होय गए हैं शस्त्रोंकी सामर्थ्य नाहीं जो शत्रुपर चलें । गौतमस्वामी कहे हैं- हे श्रेणिक ! जैसे अनंगलवण आगे रामके शस्त्र निरर्थक होय गये तैसे ही मदनांकुशके आगे लक्षमणके शस्त्र कार्यरहित होय गए । वे दोनों भाई तो जानें कि ये राम लक्ष्मण तो हमारे पिता अर पितृव्य (चचा) हैं सो वे तो इनका अंग बचाय शर चलावें अर ये उनको जानें नाहीं सो शत्रु जान शर चलावें । लक्ष्मण दिव्यास्त्रकी सामर्थ्य उनपर चलवे की न जान शर शेल सामान्यचक्र का अंकुश चलावता भया सो अंकुशने बज्रदण्डकार लक्ष्मणके आयुध निराकरण किए अरसके चलाए आयुध लवणने निराकाण किए फिर लवणने रामकी ओर शेल चलाया अर अंकुशने लक्ष्मण पर चलाया सो ऐसी निपुणतासे दोनोंके मर्मकी ठौर नलागे सामान्य चोट लगी सो लक्ष्मण के नेत्र घूमने लगे विराधितने अयोध्या की ओर रथ फेरा तब लक्ष्मण सचेत होय कोप वर विराधितसे कहता भया–हे विधित तैंने क्या किया मेरा रथ फेरा अब पीछा बहुरि शत्रुके सन्मुख लेवो रणमें पीठ न दीजिये, जे शूरवीर हैं तिनको शत्रुके सन्मुख मरण भना परन्तु यह पीठ देना महा निंद्य. कर्म शूरवीरोंको योग्य नाहीं। कैसे हैं शूरवीर ? युद्ध में बाणनिकर पूरत है अंग जिनका, जे देव मनुष्यनिकर प्रशंसा योग्य वे कायरता कैसे भजें ? मैं दशरथ का पुत्र रामका भाई वासुदेव पृथिवी में प्रसिद्ध सो सग्राममें पीठ केसे देऊ? यह वचन लक्ष्मणने कहे तब विराधितने रथ को युद्धके सन्मुख किया सो लक्ष्मणके अर मदनांकुशके महायुद्ध भया लक्ष्मणने क्रोधकर महाभयंकर चक्र हाथमें लिया, चक्र महाज्वालारूप देखा न जाय ग्रीष्मके सूर्य समान सो अंकुश पर चलाया सो अंकुशके समीप जाय प्रभावरहित होय गया अर उलटा लक्ष्मण के हाथ में आया बहुरि लक्ष्मणने चक्र चलाया सो पीछे आया या भांति बारबार पीछा आया बहुरि अंकुशने धनुष हाथमें गहा तब अंकुशको महा तेजरूप देख लक्ष्मणके पक्षके सब सामन्त आश्चर्यको प्राप्त भए तिनको यह
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