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________________ एकसौ दोवा पर्व ५२३ मनोहर सर्वशास्त्र के ज्ञातां पृथिवीमें प्रसिद्ध सो छोटे भाई लक्ष्मण सहित अर जनककी पुत्री जो सीता ता सहित पिता की आज्ञा पालिवे निमित्त अयोध्याको तज पृथिवीमें विहार करते दण्डक वनमें प्रवेश करते भए । सो स्थानक महा विषम जहां विद्याधरनिके गम्यता नाहीं खरदूषणते संग्राम भया। रावणने सिंहनाद किया ताहि सुनकर लक्ष्मणकी सहाय करनेको राम गये पीछेस् सीताको रावण हरलेगया तब रामसे सुग्रीव हनूमान विराधित आदि अनेक विद्याधर भेले भये रामके गुणनिके अनुरागकर वशीभूत है हृदय जिनका सो विद्याधरनिको ले यकर राम लंकाको गये रावणको जीत सीताको लेय अयोध्या आये स्वगपुरी समान अयोध्या विद्याधरनिने बनाई तहां राम लक्ष्मण पुरुषोत्तम नागेंद्र समान सुखसे राज्य करें। रामको तुम अब तक कैसे न जाना जाके लक्ष्मणसा भाई ताके हाथ सुर्दशन चक्र सो आयुध जाके एक २ रत्नकी हजार २ देव सेवा करें सात रत्न लक्ष्मणके अर चार रत्न रामके जाने प्रजाके हित निमित्त जानकी तजी ता रामको सकल लोक जाने ऐसा कोई पृथिवीमें नाही जो रामको न जाने या पृथिवी की कहा बात ? स्वर्गमें देव निके समूह रामके गुण वर्णन करें हैं। तब अंकुशने कही-हे प्रभो ! रामने जानकी काहे तजी सो वृत्तांत में सुना चाहूँ हूं तब सीताके गुणनिकर धर्मानुरागमें है चित्त जाका ऐसा नारद सोांसू डार कहता भया-हे कुमार हो ! वह सीता सती महा निर्मल कुलविष उपजी शीलवंती पतिव्रता श्रावकके आचारमें प्रवीण रामकी पाठ हजार राणी तिनकी शिरोमणी लक्ष्मी कीर्ति धृति लज्जा तिनकों अपनी पवित्रतात जीतकर साक्षात् जिनवाणी तुल्य, सो कोई पूर्वोपार्जित पापके प्रभावकर मूढलोक अपवाद करते भये ताते रामने दुखित होय निर्जन वनमें तजी खोटे लोक तिनकी बाणी सोई भई जेठके सूर्यकी किरण ताकर तप्तायमान वह सती काप्टको प्राप्त भई, महा सुकुमार जाविषे अल्प भी खेद न सहार पड़े मालतीकी माला दीपके आतापकर मुरझाय सो दावानलका दाह कैसे सहार सके, महा भीम बन जामें अनेक दुष्ट जीव तहां सीता कैसे प्राणनिको थरे, दुष्ट जीवनिकी जिह्वा भुजंगसमान निरपराध प्राणिनिको क्यू डसे १ शुभ जीवनिकी निन्दा करते दुष्टनिके जीभके सौ टूक क्न होवें वह महा सती पतिव्रतानिकी शिरोमणी पटुता आदि अनेक गुण निकर प्रशंसायोग्य अत्यन्त निर्मल महा सती ताकी जो लोक निंदा करें सो या भव अर परभवमें दुखको प्राप्त होंय ऐसा कहकर शोकके भारकर मौन गह रहा, विशेष कछू कह न सका । सुनकर अंकुश बोले-हे स्वामी भयंकर वनमें रामने सीताको तजते भला न किया । यह कुलवंतोंकी रीति नाहीं है लोकापवाद निवारवैके और अनेक उपाय हैं ऐसा अविवेकका कार्य ज्ञानवंत क्यों करें । अंकुशने तो यही कही अर अंनगलवण बोला—यहांसू अयोध्या केतीक दूर है ? तब नारद कही यहांसे एकसौ साठ योजन है जहां राम विराजे हैं तब दोऊ कुमार बोले हम राम लक्ष्मणपर जावेंगे या पृथ्वी में ऐसा कौन जाकी हमारे आगे प्रबलता । नारदसों यह कही अर वज्रजंघसे कही--हे मामा ! सुम देश सिंधु देश कलिंग देश इत्यादि देशनिके राजावोंको आज्ञापत्र पठाबहु जो संग्रामका सव सरंजाम लेकर शीघ्रही श्रावें हमारा अयोध्याकी तरफ कूच Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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