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________________ ५२२ पद्म पराण पुरको उद्यमी भए । वज्रजंघ लार ही है अति हर्षके भरे अनेक राजानकी अनेक प्रकार भेट आई सो महा विभूतिको लिये अतिसेना कर मंडित पुण्डरीकपुरके समीप आए, सीता सतखणे महिल चढी देखे है राजलोककी अनेक राणी समीप हैं अर उत्तम सिंहासन पर तिष्ठे हैं दूरसे श्राती सेनाकी रजके पटल उठे देख सखिनको पूछती भई—यह दिशा में रजका उडाव कैसा है तब तिन कही-हे देवी सेनाकी रज है जैसे जलमें मकर किलोल करें तैसे सेनामें अश्व उछलते आवै हैं हे स्वामिनि ! ये दोनों कुमार पृथिवी वशकर आये या भांति सखीजन कहे हैं अर बधाई देन. हारे आए नगरकी अति शोभा भई लोकनिके अति आनंद भया निर्मल ध्वजा चढाई समस्त नगर सुगंधकर छांटा अर वस्त्र आभूषणनिकर शोभित किया दरवाजे पर कलश थापे सो कलश पल्लवनिकर ढके अर ठौर ठौर बंदनमाला शोभायमान दिखती भई अर हाट बाजार पांटवरादि वस्त्रकर शोभित भए जैसी श्रीराम लक्ष्मण के पाए अयोध्याकी शोभा भई हुती तैसीही पुंडरीकपुरकी शोभा कुमारनिके पाएसे भई । जा दिन महाविभूतिम प्रवेश किया तादिन नगर के लोगनिको जो हर्ष भया सो कहिवेमें न आवै । दोऊ पुत्र कृतकृत्य तिनको देखकर सीता आनन्दके सागरमें मग्न भई दोऊ वीर महा धीर आयकर हाथ जोड माता को नमस्कार करते भये सेनाकी रजकर धूमरा है अंग जिनका, मीताने पुत्रनिको उरसे लगाया माथे हाथ धरा माताको अति आनन्द उपजा दोऊ कुमार चांद सूर्य की न्याई लोकमें प्रकारा करते भये । इति श्रीरविषेणाचार्यविरचित महापद्मपुराण संस्कृत ग्रंथ, ताकी भाषा वनिकानिये लवणांकुशका दिग्विजय वर्णन करनेवाला एकसौएकबां पणे पण भया ।। ५०१ ।। अथानन्तर ये उत्तम मानव परम ऐश्वर्यके धारक प्रबल राजानि पर याज्ञा करते सुखसू तिष्ठे एक दिन नारदने कृतान्तवक्रको पूछी कि तू सीताको कहां मेल आया, तब ताने कही कि सिंहनाद अटवी में मेली सो यह सुनकर अति व्याकुल होय ढूढता फिरे हुता सो दोऊ कुमार वनक्रीडा करते देखे तब नारद इनके समीप आया कुमार उठकर सन्मान करते भये नारद इनको विनयवान देख बहुत हर्षित भया अर श्राशीम दई जैसे राम लक्ष्मण नरनाथके लक्ष्मी है तैसी तुम्हारे होश्रो। तब ये पूछते भये कि हे देव ! राम लक्ष्मण कोन हैं, अर कौन कुल में उपजे हैं, अर कहा उनमें गुण है अर कैसा तिनका आचरण है तब नारद क्षण एक मौन पकड कहते भये-हे दोऊ कुमारो कोई मनुष्य भुजानिकर पर्वतको उखाडै अथवा समुद्रको तिरै तोहू राम लक्ष्मणके गुण कह न सके अनेक वदन कर दीर्घ काल तक तिनके गुण वर्णन करें तो भी राम लक्ष्मणके गुण कह न सके तथापि मैं तिहारे वचनसे किचिंतमात्र वर्णन करू हूं तिनके गुण पुण्यके वढावनहारे हैं। अयोध्यापुरीमें राजा दशरथ होते भये दुराचाररूप ईन्धनके भस्म करवेको अग्नि समान अर इक्ष्वाकु बंश रूप आकाश में चन्द्रमा महा तेजनय सू समान सकल पृथिवीमें प्रकाश करते अयोध्याम तिष्ठे । वे पुरुषरूप पर्वत तिनकरि कीर्तिरूप नदी निकसी, सो सकल जगतकों आनन्द उपजाती समुद्र पर्यन्त विस्तारको धारती भई ता दशरथ भूपतिके राज्यभारके धुरंधर ही चार पुत्र महागुणवान भए एक राम दूजा लक्ष्मण तीजा भरत चौथा शत्रुघ्न तिनमें राम अति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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