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________________ ठानवेवां पर्ण ५०६ मार्ग सार जानकर थार्थिका होय महा तपसे स्त्रीलिंग छेद देव भई मनुष्य होय मोक्ष पावेगी । राम लक्ष्मण अयोध्या में इन्द्रसमान राज्य करें सो लोग दुष्टमित्त निश्शंक होय अपवाद करते भये कि रावण हरकर सीता की लेगया बहुरि राम ल्याय घर में राखी राम सहा विवेदी धर्म शास्त्रके वेत्ता न्यायवन्त एसी रीति क्यों आदरें जिस रीति राजा उता लोकसाहित होने लगे, बहें- राही घर यह रीति कहा दोष ? घर में गर्भनति दुर्बल शरीर यह चितवन करती हु कि जिनेन्द्र के चैपाल अर्चना की भरतार भी मु सहित जिनेन्द्र के निर्माण स्थानक तिनको बन्धना करनेको भावसदित उद्यमी भये हुने थर मोहि एसे कहते थे कि प्रथम तो हम कैलाश जाप श्री ऋषभदेवानिर्वाण क्षेत्र बहेंगे बहुरि और निर्वाण क्षेत्रनिन्दकर अयोध्या में यदि तीर्थकर देवनका जन्म कल्याणक है सो अयोध्याकी यात्रा करेंगे जेते भगवानके चैत्यालय है तिनका दर्शन करेंगे, कम्पिल्या नगर में विमलनाथका दर्शन करेंगे अर रत्नपुर में नाथ दर्शन करेंगे। धर्मनाथ ? धर्मका स्वरूप जीवनको यथार्थ उपदेश हैं बहुरि श्रावस्ती नगरी संभवनायका दर्शन करेंगे कर चम्पापुर में वासुपूज्यका थर का कंदीपुर में पुष्पदमाश, चंद्रपुरी में चंद्रप्रका, कौशांबी पुरी में पद्मप्रभुका, भद्रलपुर में शीतलनाथका घर मिथिलापुरी नाथ स्वामीका दर्शन करेंगे अर वाणास्मीमें सुपार्श्वनाथ स्वामीका दर्शन करेंगे अर सिंहपुर में शंसनाथका अर हस्तनापुर ने शांति कुंथ अरहनाथका पूजन करेंगेकर हे देवी! कुशाग्रनगर में श्री मुनिसुव्रतनाथका दर्शन करेंगे जिनका धर्मचक्र प्रवर्ते है घर और हू जे भगवान के व्यतिय स्थानक महापवित्र हैं पृथिवी में प्रसिद्ध हैं तहां पूजा करने, भगवान के चैत्य अर चैत्यालय सुर असुर पर गन्धर्वनिकर स्तुति करने योग्य हैं नमस्कार योग्य हैं दिन सबनिकी बन्दना इस करेंगे, अर पुष्पक विमान चढ सुमेरुके शिखरपर जे चैत्यालय हैं तिनका दर्शन कर भद्रयाल वन नन्दनवन सौमनस वन तहां जिनेंद्रकी अर्चाकरि क्रूर कृत्रिम कृत्रिम अढाई दीप जैसे चैपाल हैनिकी बन्दनाकर हम अयोध्या आयेंगे ॥ 雍 म हे प्रिये ! भावसहित एकवार हू नमस्कर श्री अरहंतदेव को करें तो ने जन्म के पापदिसे छुटे हैं, हे कति ! धन्य तेरा भाग्य, जो गर्म के प्रादुर्भाव में तेरे जिन बन्दना की बांधा उात्री, मेरेहूब रही है तो सहित महापवित्र जिनमंदिरनिका दर्शन करू । हे श्रिये ! पहिले भोग धर्मको प्रवृत्ति नही लोक अम थे सो भगवान देवने भञ्योंको मोक्ष उपदेश दिया जिनकी संसारका भय होय तिनको भव्य कहिये, कैसे हैं भगवान् ऋषभ ? प्रजापति जगत श्रेष्ठ त्रैलोकन कर बन्दवे योग्य नानाप्रकार अतिशय कर संयुक्त सुर नर अरनिको आश्चर्यकारी ते भगरान भव्यों को जीवादिक तत्त्वोका उपदेश देय अनेकोंको वारिनिर्वाण सम्यक्त्वादि ऋष्टगुणमंडित सिद्ध भए जिनका चैत्यालय सर्व रलमई भरत चक्रवतीन कैलाश पर कराया थर पांच धनुषी रतमई प्रतिमा सूर्य अधिक घरे मंदिर में पथराई सो बिराजै है जाकी च देव विद्याधर गंश्व किन्नर नाव दैत्य पूजा करे हैं Jain Education International For Private & Personal Use Only - www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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