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पापुराण सुखरूप होय तब राम कहते भए तुम लक्ष्मणका राज्याभिषेक करो वह पथिलीका म्तंभ भूवर है समस्त राजानिका गुरु वासुदेव राजानिका राजा सब गुण ऐश्वर्यका स्वामी सदा मेरे चरणनि को नमै या उपरान्त मेरे राज्य कहा ?
तब वे समस्त श्रीरामकी अतिप्रशंसा कर जय जयकार शब्द कर लक्ष्मणपै गए अर सत्र वृत्तांत कहा तब लक्ष्मण सबों को साथ लेय रामपं आया पर हाथ जोड नमस्कार कर कहता मया हे वीर ! या राज्य के स्वामी आप ही हो मैं तो आपका आज्ञाकारी अनुचर हूँ तब राम ने कहा-हे वत्स ! तुम चक्र के धारी नारायण हो ताल राज्याभिषेक तुम्हारा ही योग्य है, सो इत्यादि वार्तालाप से दोनों का राज्याभिषेक ठहरा बहुरि जैसी मेघ की ध्वनि होय तैसी वादित्रनिकी ध्वनि होती भई दुन्दुभी वाजे नगारे ढोल मृदंग वीण तमूरे झालर झांझ मनीरे वांसुरी शंख इत्यादि वादित्र वाजे अर नानाप्राकरके मंगल गीत नृत्य होते भए या चकों को मनवांछित दान दीया सवनिकी अति हर्ष भया। दोऊभाई एक सिंहासन पर विराजे, स्वर्ण रत्नके कलश जिनके मुख कमलसे ढके पवित्र जलसे भरे तिनकर विधिपूर्वक अभिषेक भया, दोऊ भाई मुकट भुजबन्ध हार केयूर कुण्डलादिक कर मण्डित मनोग्य वस्तु पहिरे सुगंधकर चर्चित तिष्ठे विद्यावर भूमिगोचरी तथा तीन खण्डके देव जय जय शब्द कहते भए। यह बलभद्र श्रीराम हल मृमलके थारक अर यह वासुदेव श्रीलक्ष्मण चक्रका धारक जयवन्त होहु दोऊ राजेन्द्रनिका अभिषेक कर विद्याधर बडे उत्साहसे सीता अर विशिल्याका अभिषेक करावत भए, सीता रामकी राणी अर विशल्या लक्ष्मणकी, तिनका अभिषेक विधिपूर्वक होता भया।
अथानन्तर विभीषणको लंका दई, सुग्रीव को किहकंधापुर, हनूमान हो श्रीनगर अर हनूरुह द्वीप दिया, विराधितको नागलोक समान अलंकापुर दिया, नल नील को किकंधूपुर दिया, समुद्रकी लहरोंके समूहकर महाकोतुकरूप अर भामण्डलको बैतडयो दक्षिण अणिविषे रथन् र दिया समस्त विद्याधर निका अधिपति किया अर रत्नजटीको देवोपनीत नगर दिया कर भी यथायोग्य सबनिको स्थान दिये । अपने पुण्यके उदय योग्य सबही राम लक्ष्मण के प्रतापते राज्य पोवते भए । रामकी आज्ञा कर यथायोग्य स्थानमें तिष्ठे। जे भव्यजीव पुण्यके प्रभावका जगतविर्षे प्रसिद्ध फल जान धर्मविष रति करे हैं वे मनुष्य सूर्य से अधिक ज्योति को पावे हैं। इति श्रीरविषेणाचार्यविरचित महापद्मपुराण संस्कृत ग्रंथ ताकी भाषा वचनिकाविौं राम लक्ष्मणका
राज्याभिषेक वर्णन करनेवाला अठासीवां पर्व पूर्ण भया ।। ८ ।। अथानन्तर राम लक्ष्मण महा प्रीतिकर भाई शत्रुघ्नसू कहते भए, जो तुम को रुचै सो देश लेवो जो तुम आथी अयोध्या चाहो तो आथी अयोध्या लेवो अथवा राजगृह अथवा पोरनापुर अथवा पौंड्रसुन्दर इत्यादि सेकडा राजधानी हैं, तिनमें जो नीकी सो निहारी नत्र शत्रुघ्न करता भया-मोहि मथुराका राज्य देवो तब राम बोले-हे भ्रात! वहां राजा मधुका राज्य है अर यह रावणका जमाई है अनेक युद्धनिका जीतनहारा ताको चमरेन्द्रने त्रिशूल रन दिया है ज्येष्ठके
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