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पचासीयां पर्व
तो मार्गमें कोटपालके किंकरने पडा और विनोद खड़ग हाथमें लिए अशोकदत्तके मारवेको यक्षके मन्दिर आया सो जार समझ खडगसे भाई ग्मण को गरा, अन्धकारमें दृष्टि न पडा सो रमण मुवा, विनोद घर गया बहुरि विनोद भी मुवा सो दोनों अनेक भव धारते भए॥
बहुरि विनोदका जीव तो साल वनमें श्रारण भैंसा भया अर रमणका जीव अंधा रीछ भया सो दोनों दावानलमें जरे, मरकर गिरिवनमें भील भए बहुरि मरकर हिरण भए सो भीलने जीवते पकडे दोनों अति सुन्दर मो तीसरा नारायण स्वयंभूति श्रीविमलनाथजीके दर्शन जायकर पीछे आवे था उसने दोनों हिरण लिए अर जिनमन्दिरके समीप राखे, सो राजद्वारसे इनको मनवांछित आहार मिलै अर मुनिनिके दर्शन करें जिनवाणीका श्रवण करें तिनविष रमणका जीव जो मृग हुता सो समाधि मरण कर स्वर्गलोक गया अर विनोदका जीव जो मृग हुता वह आर्तध्यानसे तियंचगतिमें भ्रमा बहुरि जंबूद्वीपके भरत क्षेत्रमें कंपिल्यानगर तहां धनहत्त नामा बणिक घाईस कोटि दीनारका स्वामी भया। चार टांक स्वर्णाकी एक दीनार होय है ता बणिकके बाणी नाम स्त्री उसके गर्भ में दूजे भाई रमणका जीव मृग पर्यायसे देव भया था सो भूषण नाम पुत्र भगा निमित्तज्ञानीने इसके पितासे कहा कि-यह सर्वथा जिन दीक्षा धरेगा, सुनकर पिता चिंतावान भया, पिता । पुषसे अधिक प्रेम इसको घरहीविष राखै बाहिर निकसने न देय सब सामग्री याके घरमें विद्यमान यह भूषण सुन्दर स्त्रीनिकर सेव्यमान । नाना प्रकारके वस्त्र आहार सुगन्थादिक विलेपन कर घरविष सुख पे रहे या को सूर्यके उदय अस्तकी गम्य नाही, याके पिताने सेकडों मनोरथकर यह पुत्र पाया पर एकही पुत्र सो पूर्व जन्मके स्नेहसे पिताके प्राणसे भी प्यारा, पिता तो विनोदका जीव अर पुत्र रमण का जीव, आगे दोनों भाई हुते सो या जन्मविष पिता पुत्र भए॥
___ संसारकी विचित्र माया है ये प्राणी नटवत् नृत्य करे हैं संसारका चरित्र स्वप्नके राज्य समान असार है एक समय यह धनदत्तका पुत्र भूषण प्रभात समय दुदुभी शब्द सुन आकाशमें देवनिका आगमन देख प्रतिबुद्ध भया यह स्वभावसे ही कोमलचित्त धर्म के प्राचारमें महा हर्षका भरा दोनों हाथ जोड नमस्कार करता, श्रीधर केवलीकी बन्दना शीघ्र जाय था सो सिवाण से उतरते सर्पने डसा, देहतज महेंद्र नाम जो चौथा स्वर्ग तहां देव भया तहांसे चयकर पुष्कर द्वीप में चन्द्रादित्य नामा नगर तहां राजा प्रकाशश ताके राणी माधवी उसके जगद्यत नामा पुत्र भया । यौवनके उदयमें राज लक्ष्मी पाई परंतु संसारसे प्रति उदास, राजमें चित्त नाहीं सो याके पद्ध मंत्रिनिने कही यह राज तिहारे कुल क्रनसे चला आवै है सो पालो तिहारे राज्यसे प्रजा सुखरूप होगी सो मंत्रियोंके हठसे यह राज्य करे । राज्य में तिष्ठता यह साधुनिकी सेवा करे सो मुनिके दानके प्रभावसे देवकुरु भोगभूमि गया तहांसे ईशान नाम दूजा स्वर्ग तहां देव भया चार सागर दोय पन्य देवलोकके सुख भोग देवांगनानिकर मण्डिन नाना प्रकारके भोग भोग तहांसे चया सो जम्बू द्वारके पश्चिम विदेह मध्य अचल नामा चक्रवर्तक रत्न नाम राणीके अभिराम नामा पुत्र भया सो महागुणनिका समूह अति सुन्दर जाहि देख सर्व लोकको आनन्द होय सो
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