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________________ ४७४ पदा पगण समान अचल सर्गपरिग्रहके त्यागी महातप करते भये तिनके संग चार हजार राजा निसे ते परीषह न सह सकनेकर व्रत भ्रष्ट भये स्वेच्छा विहारी होय वन फनादिक भखते भए तिनके मध्य भारीच दण्डीका भेष धरता भया ताके प्रसंगसे सूदय चन्द्रोदय राजा सुप्रभयके पुत्र राणी प्रल्हादनाकी कुनीमें उपजे ते भी चरित्र भ्रट भए म रोचके मार्ग लागे कुधमक आचरणसे चतुगति संसारमें भ्रमे अनेक भवों में जन्म मरण किए बहुरि चन्द्रोदय का जीव कर्मके उदयसे नाग. पुरनामा नगरमें राजा हरिपतिके राणी मनोलनाके गर्भ में उपजा कुलकर नाम कहाण्या बहरि राज्य पाया अर सूर्योदयका जीव अनेक भव भ्रमण कर उसही नगरमें विश्व नामा ब्राह्मण जिसके अग्निकुंड नामः स्त्री उसके अतिरति नामा पुत्र भया सो पुरोहित पूर्व जन्मके स्नेहसे रामा कुलंकरको अतिप्रिय भया, एक दिन राजा कुलकर तापसियोंके समीप जाय था सो मागावणे - भिनन्दन नामा मुनिका दर्शन भया । वे मुनि अवधिज्ञानी सर्व लोकके हितु तिन्होंन राजासे कही तेरा दादा सर्प भया सो तपस्वियोंके काष्ठमध्य तिष्ठे है सो तापसी काष्ठ विदारेंगे सो तू रक्षा करियो तब यह सहा गया जो मुनिने कही थी त्योंही दृष्टि पडी इसने सर्प वचाया पर तापसियोंका मार्ग हिंसा रूप जान तिनसे उदास भया, मुनिव्रत धारिवेको उद्यम किया तब श्रुतिरति पुरोहित पापकर्मीने कहीं-हे राजन् ! तिहारे कुनमें वदोक्त धर्म चला आया है अर तापसही तिहारे गुरु हैं तातें तू राजा हरिपतिका पुत्र है तो वेदमार्गका ही आचरण कर, जिनमार्ग मत आरै, पुत्रको राज देय वेदोक्त विधिकर तू तापसका व्रत घर, मैं तेरे साथ तप धरूंगा, या मांति पापी पुरहित मृहमतिने कुलंकरका मन जिनशापनसे फेरा अर कुलंकरका स्त्री श्रीदामा सोपिनी पर पुरुषा. सक्त उसने विचारी कि मेरी कुक्रिया राजाने नानी इसलिए तप धार है सो न जानिए तप धरै कैन धरै, कदाचित् मोहि मारे तातें मैं ही उसे मारू तब उसने विष दयकर राजा अर पुरोहित दोनों मारे सो मरकर निकुजिया नामा वनमें पशुधातकके पापसे दोनों सुआ भए बहुर मीडक भए ममा भए मोर भए सर्प भर कूकर भए कर्मरूप पवन के प्रेरे तियंच योनिमें भ्रमे बहुरि पुरोहित श्रतिरतिका जीव हस्ती भया पर रजा कुलंकरला जीव मीडक भया सो हाथ के पगतलेते दबकर मुबा, बहुरि मीडक भया सो सके सरोवरमें कागनि भषा सो कूकडा भया हाथी मर मार्जार भया उसने कुक्कुट भषा कुलंगरका जीव तीन जन्म कूडा भया सो पुरोहितके जीव माजारने भषा बहुरि ये दोनों मुसा मार मच्छ भए सो धीररने जालमें पकड कुहाडेनि से काटे सो मुवे दोनों भर कर राजगृही नगरमें वह्वा नामा ब्रह्मण उसकी उल्का नामा स्त्रीके त्र भए । पुरोहितके जीवका नाम विनोद, राजा कुलं रके जीवका नाम रमण ,सो महादरिद्री अर विद्यारहित तब रमणने विचारी देशान्तर जाय विद्या पढ़ तब घरसे निकसा पृथिवीमें भ्रमता चारों वेद अर बेदोंके अंग पढे बहुरि र जगृही नगरी आय पहुंचे भाईके दर्शनको अभिलाषा सो नगरके बाहिर पर्य अस्त होय गया आकाशमे मेघाटल के योगसे अति अन्धकार भया सो जीर्ण उद्यानके मध्य एक यत का मन्दिर तहां बैठा अर याके भाई विनोदकी समिधा नामा स्त्री सा महा कुजीना एक अशोकदत्त नाभा पुरुषसे आसक्त सो ताले यक्षके मन्दिरसा संकत किया हुता सो अशोकचो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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