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________________ पंपरीण भोजन देय मित्र बांधवादि सहित भोजन किया, अर भावजों को भोजन कराया फिर लोक अपने अपने स्थानको गए। समस्त लोक आश्चर्यको प्राप्त भए, हाथी रूठा फिर भरतके समीप खडा रहा सो सबों को आश्चर्य उपजा, गौतममणवर राजा श्रेणिकसे कहे हैं कि-हे राजन् ! हाथीके समस्त महावत राम लक्ष्मणपै माय प्रणामकर कहते भए कि हे देव ! आज गजराजको चौथा दिन है कळू खाय न पीये न निद्रा करै सर्व चेटा तन निश्चल ऊभा है जिस दिन क्रोध किया था पर शांत भया उसही दिनसे ध्यानारूढ निश्चल करते है। हम नानाप्रकार के स्तोत्रों कर स्तुति करें हैं अनेक त्रिय वचन कहे हैं तथापि आहार पानी न लेय है, हमारे वचन कान न धरे, अपनी सूण्ड को दांतों में लिये मुद्रित लोवन ऊभा है मानों चित्रामका गज है जिसे देखे लोकोंको ऐसा भ्रम होय है कि यह कृत्रिम गज है अथवा सांचा गज है । हम प्रिय वचन कह आहार दीया च हे हैं सो न लेय नानाप्रकारके गजोंके योग्य सुन्दर श्राहार उसे न रुचे चिन्तावान सा ऊभा है निश्वास डारे है समस्त शास्त्रोंके वेत्ता महा पंडिन अमिद गनवेद्योंके भी हाथ हाथीका रोग न आया, गंधर्व नानाप्रकारके गीत गायें हैं सो न सुनेर नृत्यकारिणी नृत्य करे हैं सो न देखे पहिले नृत्य देखे था गीत सुन था अनेक चेष्टा करे थामा सब तजा नानाप्रकारके कोतुक होय हैं सो दृष्टि न धरै मंत्रविद्या औषधादिक अनेक उपाय किए सो न लगे आहार विहार निद्रा जलपानादिक सब तज हम अति विनती करें हैं सो न साने जैसे रूठे मित्र को अनेक प्रकार मनाइये सो न माने । न जानिए इस हाथीके वित्त में कहा है काहू वस्तु से काहू प्रक र रीझे नाही काहू वस्तुपर, लुभावे नाहीं खिनाया संतां क्रन्थ न करे चित्राम कामा खडा है । यह त्रोक्यमंडन हाथी समस्त सेनाका श्रृंगार है जो पापको उपाय करन होय यो करो हम हाथीका सब वृत्तांत आपसे निवेदन किग, तब राम लक्ष्मण गजराज की चेष्टा सुन चिंतावान भए मनमें विचार हैं यह गजबन्धन तुडाय निसरा कौन प्रकार क्षमाको प्राप्त भया अर आहार पानी क्यों न लेय ? दोनों भाई हाथीका शोच करते भये। इति श्रीरविषेणाचार्यविरचित महापद्मपु गण संस्कृत ग्रन्थ, ताको भाषा बचनिकागि त्रिलोकमंडन हाथीका कथन वर्णन करनवाला चौरामीवां पर्व पण भया ।। ८४॥ . अथान तर गोतमस्वामी राजा श्रेमिक कहे है-हे नराधिपति ! ताही समय अनेक मु. निन सहित देशभूषण कुलभूषण केवली जिनका वंशस्थल गिरि ऊपर राम लक्ष्मणने उपसर्ग निवारा हृता अर जिनकी सेवा करने कर गरुडेंद्रने राम लक्ष्मण से प्रसन्न होय उनको अनेक दिव्यशस्त्र दिये, जिनकर युद्ध में विजय पाई । ते भगवान केवली सुर असुरानकर पूज्य लोक प्रसिद्ध अयोध्याके नन्दनवन समान महेन्द्रोदय नामा बनविणे महा संव सहित आय विराजे, तब राम लक्षण भरत शत्रुन दशनके अर्थ प्रभातही हाथिन पर चढि जायवेको डद्यत्री मए अर उपजा है जाति स्मरण जाको ऐसा जो त्रैलोक्यम् ण्डन हाथी सो आगे चला जाय है जहां वे दोनों केवली कल्याण के पर्वत तिष्ठे हैं वहां देवनि समान शुभचित्त नरोत्तम गए अर कौशल्या सुमित्रा केई सुप्रभा यह चारों ही माता साधुभक्तिमें तत्पर जिन शासनकी सेवक स्वर्गनिवा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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