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पांचवां पर्व तब द्रव्यके अर्थ सुरंग लगाय राजाके महलमें चोरीको गया । सो राजाके मह नमें से द्रव्य लाये अर दुव्यसन सेवे । कई एक दिनों में भावन परदेशने आया । घरमें पुत्र को न देखा तब स्त्री पूछा। स्त्रन कही "इस सुरगणे होयकर राजाके महिल में चोरीकों गया है।" तब यह पिता पुत्र के मरणकी शंका कर उसके लायनेको सुरंगमें आया । सो यह तो जावे था अर पुत्र आवे था। पुत्रने जाना यह कोई बैरी आवे है सो उसने बैरी जान खड्गसे मरा पीछे स्पर्शकर जाना यह तो मेरा बाप है तब महा दुखी होय डरकर भागा अर अनेक देश भ्रम गु कर मरा । पिता पुत्र दोनों कुत्ते भए, फिर गीदड़ फिर मार्जार भए, फेर रीछ भये, फिर बोला भरे, फेर भैंसे भये, सो इतने जमॉमें परस्पर घातकर मरे, फिर विदेह क्षेत्रमें पुष्कलावती देशमें मनुष्य भगे, उग्र तपकर एकादश स्वर्गमें उत्तर अनुत्तर न मा देव भए, वहांतें आयकर ज. भा न न मा पिता हुता वह तो पूर्णमेघ द्यिाधर भया र हरिदास न मा पुत्र जो हुता सो मुल चन नामा विद्याधर भया इस वैरसे पूर्णमेश्ने सुलाचनको मरा ।
तब गणधर देवने सहसनयनको अर मेघवाहनको कहा-तुम अपने पिताओंका इस भांति चरित्र जान संसारका बैर तजकर समभाव धरो अर सगर चक्रवर्तीने गणधरदेवको पूछा कि 'हे महाराज ! मेघवाहन अर सहसूनयनका बेर क्यों भवा ? तब भगानकी दिव्य ध्वनिमें प्राज्ञा भई कि 'जम्बूद्वीपके भरतक्षेत्र में पद्मक नाभा नगर है तहां प्रारम्भ नामा गणित शास्त्रका पाठी महा धनवंत ताके दो शिष्य एक चन्द्र एक आवली भये, इन दोनोंमें मित्रता हुती अर दोनों धनवान गुणवान विख्यात हुए सो इनके गुरु बारम्मने जो अनेक नयचक्रमें अति विचक्षण हुत मनों विचारा कि कदाचित् यह दोनों मेरा पद भी करं। ऐसा जानकर इन दोनों के चित जुदे कर डारे । एक दिन चन्द्र गायकों वे ग्ने गोपालके घर गया सो गाय बेचकर वह तो घर आता हुना अर श्रावती । उसो गाय को गागाल से खरीदकर लावता देखा इस कारण मार्ग में चन्द्रने प्रावलीको मरा । सो म्लेच्छ भा र चन्द्र मरकर बलय भया । म्लेच्छने बलयको भखा । म्लेच्छ नरक तिच योनिमें भ्रमण कर मूना भया अर चन्द्रका जीव मार्जार भया, मार्जारने मूसा भखा फिर ये दोऊ पाप कर्मके योगसे अनेक योनिमें भ्रमणकर काशीमें संभ्रमदेवकी दासीके पुत्र दोऊ भाई भए, एकका नाम कूट अर एकका नाम कापलिक। इन दोनोंको संभ्रमदेवने चैत्यालयकी टहलको राखा । सो मर र पुपके योगसे रूपानन्द तो चयकर कलूबीका पुत्र कलंधर भया अर स्वरूपानंद पुरोहितका पुत्र पुगभूत भया, यह दोनों परस्पर मित्र एक हालीके अर्थ बैरको प्राप्त भए अर कुलंधर पुषभूतक मारणको प्रवृत्ता। एक वृक्षके तले साधु विराजते हुते तिनसे धर्म श्रवणकर कलंधर शांत भया । राजाने इसको सामंत जान बहुत बढ़ाया । पुष्पभूत कुलंधरको जिनधर्मके प्रसादसे संपत्ति .नि देखकर जैनी भया, ब्रतधर तीसरे स्वर्ग गया अर कुलंधर भी तीसरे स्वर्ग गया । स्वर्गसे चयकर दोनों धातकी खाडके विदेहमें अरिंजय पिता अर जयावती माताके पुत्र भए। एकका नाम अमरचत दूसरे का नाम धनत यह दोनों भाई बड़े योधा सहसशिरसके एतबारी चाकर जगतमें प्रसिद्ध हवे ।
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