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________________ 親愛 पद्म-पुराण प्रातिहार्य प्रकट भए, भगवानके नव्वे गणधर भए र एक लाख मुनि भए । I अजितनाथ के पुत्र विजयसागर जिनकी ज्योति सूर्य समान है उनकी राणी सुमंगला उनके पुत्र सगर द्वितीय चक्रवर्ती भए । नवनिधि चौदह रत्न आदि इनकी विभूति भरत चक्रवतके समान जाननी । तिनके समय में एक वृत्तान्त भया सो हे श्रेणिक ! तुम सुनो । भरत क्षेत्र के विजयार्धकी दक्षिण श्रेणिमें चक्रवाल नगर तहां राजा पूर्णघन विद्याधरोंके अधिपति महा प्रभाव मंडित विद्यावलकर अधिक तिनने विहायतिलक नगर के राजा सुलोचनकी कन्या उत्पलमती विवाहके वास्ते मांगी। राजा सुलोचनने निमित्त ज्ञानी के कहने से उसको न दी र सगर चक्रवर्तीको देनी विचारी, तव पूर्णघन सुलोचन पर चढ़ आए । सुलोचन के पुत्र सहस्रनयन अपनी बहिन को लेकर भागे यर बनमें छिप रहे । पूर्णघननं युद्ध में सुलोचनको मार नगर में जाय कन्या ढूढी परन्तु न पाई तब अपने नगरकी चले गये, सहस्रनयन बापका बध सुन पूर्णमेघ पर क्रोधायमान भए परन्तु कछु कर नाहीं सके, गहरे बनमें घुसे रहे । कैसा है वह वन सिंहव्याघ्र अष्टापदादिसे भरा है। पश्चात् चक्रवर्तीको एक मायामई अश्व लेय उड़ा सो जिस वनमें सहसूनयन हुते तहां आये । उत्पमतीने चक्रवर्तीको देखकर भाईको कहा कि चक्रवर्ती आप ही यहां पधारे हैं । तत्र भाईने प्रसन्न होयकर चक्रवर्तीको बहिन परिणाई । यह उत्पलमती चक्रवर्तीकी पटरानी स्त्रीरत्न भई श्रर चक्रवने कृपाकर सहस्रनयनको दोनों श्रेणीका अधि पति किया । सहस्रनयनने पूर्णघन पर चढ़कर युद्धमं पूर्णघनको मारा र बापका बैर लिया । चक्रवर्ती छह खण्ड पृथ्वीका राज करे अर सहस्रनयन चक्रवर्तीका साला विद्याधरकी दोऊ श्रेणीका राज करे । अर पूर्णमेघका बेटा मेघवाहन भयकर भागा । सहस्रनयन के योधा मारनेको लारें (साथ) दौड़े सो मेघवाहन समोशरण में श्री अजितनाथकी शरण आया इन्द्रने भयका कारण पूंछा तत्र मेघवाहनने कहा - 'हमारे बापने सुलोचनको मारा था सो सुलोचनके पुत्र सहस्रनयनने चक्रवर्तीका बल पाकर हमारे पिताको मारा अर हमारे बंधु क्षय किये अर मेरे मारने के उद्यम है सो मैं मन्दिरतें हंतोंके साथ उड़कर श्रीभगवानकी शरण आया हूं ।' ऐसा कहकर मनुष्यों के कोठे में बैठा । जो सहस्रनयन के योधा इसके मारणेको आये हुते ते इसको समोशरण में श्रया जान पीछे हट गए अर सहस्रनयनको सकल वृत्तान्त कहा तब वह भी समोशरण में श्राया भगवान के चरणादिके प्रसाद ने दोनों निर्वैर होय तिष्ठे । तब गणवरने भगवानसे इनके पिताका चरित्र पूछा ! भगवान कहे हैं कि - " जम्कीपक भरत क्षेत्र में सद्गति नामा नगर वहां भावन नामा बणिक उसके आतकी नामा स्त्री अर हरिदास नामा पुत्र, सो भावन चार कोटि द्रव्यका धनी हुता तो भी लोभ कर व्यापार निमित्त देशांतरको चला । चलते समय पुत्रको सब धन सौंपा अर द्यूतादिक कुव्यसन न सेवनेकी शिक्षा दोनी । हे पुत्र ! यह द्यूतादि (जुवा ) कुव्यसन सर्वदोषका कारण है इनको सर्वथा जने इत्यादि शिक्षा दकर आप धनतृष्णाके कारण जहाजके द्वारा द्वीपान्तरको गया । पिताके गए पीछे पुत्रने सर्व धन वेश्या जुआ और सुरापान इत्यादिक कुव्यसनमें खोया । जब सर्व वन जाता रहा पर जुआरीनका देनदार हो गया 1 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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