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________________ ३३ पांचवा पर्व ममवांछित दान दिये अर जो अंकुरको दल मलते आए थे तिनको अवती जान उनका आदर न किया अर बतियोंको ब्राह्मण ठहराए, चक्रवर्तीके माननेसे कैएक तो गर्वको प्राप्त भये अर कैएक लोभकी अधिकतासे धनवान् लोकोंको देख कर याचनाको प्रवर्ते ॥ तब मतिसमुद्र मंत्रीने भरतसे कहा कि समोशरणमें मैंने भगवानके मुख से ऐसा सुना है कि जो तुमने विप्र धर्माधिकारी जानकर माने हैं वे पंचम कालमें महा मदोन्मत्त होवेंगे अर हिंसामें धर्म जान कर जीवोंको हनेंगे अब महा कपायसंयुक्त पहा पार क्रिया प्रवर्तेगे अर हिंसा के प्ररूपक ग्रन्थोंको अकृत्रिम मान कर समस्त प्रजाको लोभ उपजावेंगे। महा आरम्भविषै आसक्त परिग्रहमें तत्पर जिनमापित जो मार्ग उपकी सदा निंदा करेंगे । निन्थ मुनको देख महा क्रोथ करेंगे, यह वचन सुन भरत इन पर क्रोधायमान भए, तब यह भगवानके शरण गए। भगवान ने भरतको कहा-हे भरत ! जो कलिकालविषै ऐसा ही होना है तुम कषाय मत करो । इस भांति विनों की प्रवृत्ति भई अर जो भगवानके साथ वैराग्यको निकले ते चारित्रभ्रष्ट भए । तिनमें कच्छा. दिक तो कैएक सुलटे अर मारीचादिक नहीं सुलटे तिनके शिष्य प्रतिशिष्यादिक सांख्य योगमें प्रवर्ते, कोपीन ( लंगोटी) पहरी बल्कलादि धारे । यह विप्रनिकी अर परिव्राजक कहिये दंडीनिकी प्रवृत्ति कही। ___ अथानन्तर अनेक जीवनकों भवसागर से तारकर ऋषभ कैलाशके शिख से लोकशिखर जो निर्वाण उसको प्राप्त भए, भरत भी कुछ काल राज्यकर जीर्ण तृणवत् राज्यको छोड़कर वैराग्यको प्राप्त भये अंतर्मुहूर्तमें केवल उपना पीछे अायु पूर्णकर निर्वाणको प्राप्त भए। . इति श्रीरविषणाचार्यविरचित महापद्मपुराणका भाषाटीकाविषे श्रीऋषभका कथन जाविषै है पेसा चौथा अधिकार सपूण भया ॥ ४ ॥ EEEEEEEEE अथ वंशोत्पत्ति नामा महाधिकार ॥२॥ अथानन्तर गौतम स्वामी राजा श्रेणिकसे वंशोंकी उत्पत्ति कहते भए कि हे श्रेणिक ! इस जगतविष महावंश जो चार तिनके अनेक भेद हैं। १ प्रथम इक्ष्वाकुवंश । यह लोक का आभूषण है इसमें से सू िवंश प्रवर्ता है। २ दूसरा सोम (चन्द्र ) वंश चन्द्रमाकी किरण समान निर्मन है। ३ तीसरा विद्याधरोंका वंश अत्यन्त मनोहर है । ४ चौथा हरिवंश जगतविष प्रसिद्ध है। अब इनका भिन्न २ विस्तार कहै हैं ___ इक्ष्वाकुवंशमें भगवान ऋषभदेव उपजे तिनके पुत्र भरत भए, भरतके पुत्र अर्ककीर्ति भए, राजा अर्ककीर्ति महा तेजस्वी राजा हुए। इनके नामसे सूर्यवंश प्रवृत्तो है अर्क नाम सूर्यका है इसलिये अर्ककीर्तिका वंश सूर्यवंश कहलाता है इस सूर्यवंशमें राजा अर्ककीर्तिके सतयश नामा पुत्र भये इनके बलांक तिनके सुबल तिनकै रवितेज तिनके महाबल महाबलके अतिबल तिनके अमृत, अमृतके सुभद्र तिनके सागर तिनके भद्र तिनके रवितेज तिनके शशि तिनके प्रभूतलेज तिनके तेजस्वी तिनके तपबल महाप्रतापी तिनके अतिवीर्यं जिनके सुवीयं तिनके उदितपराक्रम तिनके सूर्य तिनके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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