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पद्म-पुराण
ज्योति समान पुन
पर्श लघुकर विषै आय पडी सो अवी दुष्ट जीवनिकर महा भयानक जाका नाम श्वापदरौव जहां विद्याधरोंका भी प्रवेश नाहीं. वृक्षनिके समूहकर महा अंधकाररूप नाना प्रकार की वेदनिकर बेठे नाना प्रकार के ऊंचे वृक्षनिकी सघनतासे जहां सूर्य की किरणका भी प्रवेश नाहीं पर चीता व्याघ्र सिंह अष्टापद गैंडा रीछ इत्यादि अनेक वनचर विचरें अर नीची ऊंची विषमभूमि जहां बडे २ गर्त ( गढे) सो यह चक्रवर्तीकी कन्या नंगशरा बालक अकेळी ता बनने महाभयकर युक्त अति खेदखिन्न होती भई । नदीके तीर जाय दिशा लोकनर माता पिताकी चितार रुदन करती भई - हाय ! मैं चक्रवतकी पुत्री मेरा पिता इन्द्रमान ताके मैं अनि लाडली दैवयोगकर या अवस्थाको प्राप्त भई कहा करू ? या वनका छोर नाहीं यह वन देखे दुःख उपजे, हाय माता ऐसे महा दुःखकर मोहि गर्भ राखी का हेसे मेरी दया न करो। हाय मेरे परिवारकं उत्तम मनुष्य हो ! एक क्षणमात्र मोहि न छोडने सो अब क्यों रुज दीनी घर में होती ही क्यों न मरगई, काहेसे दुःख की भूमिका भई, चाही मृत्यु भी न मिले, कहा करू कहां जाऊ' में पापिनी कैसे छू यह स्वप्न है कि साक्षात् है । या भांति चिरकाल बिलापकर महा विह्वल भई ऐसे विलाप किए जिनको सुन महा दुष्ट पशुका भी चित्त कोमल होय । यह दीनचित्त क्षुधा तृष्णासे दग्ध शोकके सागर में मग्न फल पत्रादिकसे कीनी है आजीविका जाने, कर्मके योग ता वनमें कई शीतकाल पूर्ण किए। कैसे हैं शीतकाल ? कमलानिके वनकी शांभाका जो सर्वस्व ताके हरणहारे पर जिसने अनेक ग्रीष्मके आताप सहे, कैंप हैं ग्रीष्मके प्रताप ! सूके हैं जलोंके समूह अर जले हैं दावानलों से अनेक वन वृक्ष अर अरे हैं मरे हैं अनेक जन्तु हो अर जाने ता वनमें वर्षाकाल भी बहुत व्यतीत किए ता समय जलधारा के अन्धकारकर दब गई है सूर्य की ज्योति र ताका शरीर वर्षा धोया के समान हो गया, क्रांतिरहित दुर्बल विखरे केश मलयुक्त शरीर लावरहित ऐसा हो गया जैसे सूर्यके प्रकाशकर चन्द्रमाको कलाका प्रकाश कीण होय जाय, कैथका वन फलनियर नम्रीभूत वह बैठी, पिताको चितार या भांतिके वचन कहकर रुदन करे कि मैं जो चक्र तो जन्म वाया अर पूर्व जन्मके पपकर वन में ऐसी दुःख अवस्थाको प्राप्त भई । या भांति आंसुवों की वर्षा कर चातुर्माधिक किया अर जे वृद्धांसे टूटे फल सूक जांय तिनका भक्षण करे अर बेला तेला आदि अनेक उपवासनिकर क्षीण होय गया है शरीर जाता सो केवल फल अर जलकर पारणा करती भई, अर एक ही बार जल ताही समय फल । यह चक्र पुत्री पुष्पनिकी सेजर सोबती कर अपने केश भो जाको चुभते सो विषम भूमिपर खेदसहित शयन करती भई पिताके अनेक गुणीजन राग करते तिनके शब्द सुन प्रवोधको पावती सो अब स्थाल आदि अनेक बनचरोंके भयानक शब्दसे रात्रि व्यतीत करती भई । या मांति तीन हजार वर्ष तप किया सके फन तत्रा सूत्रे पत्र र पवित्र जल आहार किये अर महावैराग्यको प्राप्त होय खान पानका त्यागकर धीरता घर संलेपणा मरण आरम्भा एक सौ हाथ भूमि पावोंसे परै न जाऊं यह नियम धार तिष्ठी, आयु में छह दिन बाकी हुते अर
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