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पद्म-पुराण कर्मरूप सूर्य के उदय कर फल का प्रकाश होय है ताहि न मनुष्य न देव न नाग न असुर कोई भी निवारचे समर्थ नाहीं यह जीव अाना उपाजो कर्म पाप ही भोगवे है ॥ इति श्रीरविषणाचार्यविरचित महापापुगण संस्कृत ग्रन्थ ताकी भाषा वचनिकाविणै लक्षमणके
शक्ति लगना अर रामका विलाप करनेवाला सठवा पर्व पर्ण भया ।। ६३ ।।
अथानन्तर रावण लक्ष्मण का निश्चय से मरण जान पर अपने भाई अर दोऊ पुत्रनि को युद्ध में मरण रूप ही जान अत्यन्त दुःखी भवा । रावण विलापकरे है-हाय भाई कुम्भकर्ण परम उदार अत्यंन हितु कहा ऐमी बन्धन अवस्थाको प्राप्त भया , हाय इन्द्रजीत मेघनाद महा पराक्रमके धारी हो, मेरी भुजा समान दृढ कर्मके योमकर बंधको प्राप्त भए ऐसी अवस्था अबतक न भई , मैं शत्रुका भाई हना है सो न जानिर शत्रु व्य कुल भया कहा करे ? तुम सारिखे उत्तम पुरुष मेरे प्रागवन्लम दुःख अवस्थाको प्राप्त भए या समान मोकों श्री कष्ट का ? ऐमा रावण गोप्य भाई मर पुत्रनिका शोक करता भया अर जानकी लक्ष्मण के शक्ति लगी सुन अतिरुहन करती मई-हाय लक्ष्मण ! विनयवान गुणभूषण ! तू मन्दभागिनीके निमित्त ऐमी अवस्थाको प्राप्त भया , मैं तोहि ऐसी अवस्था में हू देखा चाहूं हुं सो दैवयोग से देखने नहीं पाऊ हुँ । तो सारिखे योधा को पापी शत्रु ने हना सो कहा मेरे मरणका संदेह न किवा , तो समान पुरुष या संसारमें और नाही जो बडे भाई की सेवामें आसक्त ई चित्त जाका समस्त कुरम्मको तजि भाइके साथ निकमा अर समुद्र तिर यहां आया ऐसी अवस्थाको प्राप्त भया तोहि मैं कर देखू। कैसा है तू बालक्रीड में प्रवीण पर महाविनयवान महा विष्टवाक्य अमृतकार्यका करणहारा ऐमा दिन कब होगा जो तुझे मैं देखू। सर्व देव सर्व प्रकार तेरी सहाय करहु, हे सर्व लोकके मनके हरण हारे तू शक्ति की शल्यसे रहित होय ! या भांति महा कष्टतै शोकरूप जानकी विलाप करे। ताहि भातनिकर अति प्रीतिरूप जे विद्याथरी तिनने धीर्य बंधाय शांतचित्त करी-हे देवि ! तेरे देवर का अबतक मरनेका निश्चय नाहीं त तँ तू रुदन मतकर अर महाधीर सामन्तोंकी यही गति है अर या पृथ्विीमें उपाय भी नानाप्रकारके हैं ऐसे विद्याधरपोंके वचन सुन सीता किंचित् निराकुन भई । अब गोतम स्वामी राजा श्रेणिक कहे हैं-हे राजन! अब जी लक्ष्मणका वृत्तान्त भया सो सुन--एक योधा सुन्दर है मृत जाकी सो डेरोके द्वार पर प्रवेश करता भामंडहने देखा और पूछा कि तु कोन अर कहां से आया अर कोन अर्थ यहां प्रवेश कर है यहां ही रह आगे मत जावो । तब वह कहता भया मोहि माने ऊपर कई दिन गए हैं मेरे अभिलाषा रामके दर्शनकी है सो राममा दर्शन करूंगा अर जो तुम लक्ष्मण के जीवनेकी बांछा करो हो तो मैं जीवनेका उपाय कहूँगा । जय वाने ऐसा कहा तब भामंडल अति प्रसन्न होय द्वार आप समान अन्य सुभट भेल ताहि लार लेय श्रीरामपं आयासो विद्याधर श्रीरामसे नमस्कारकर कहता भया
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