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________________ पद्म-पुराण नाम पचि है पर तीन रथ तीन गज पन्द्रह पयादे नव तुरंग याको सेना कहिये अर नव रथ नव गज पेंतालीस पयादा सत्ताईस तुरंग याहि सेनामुख कहिये पर सत्ताईस रथ सत्ताईस गज एकसौ पैंतीस पयादा इक्कामी अस्व इसे गुल्म कहिये अर इक्यासी रथ इक्यासी गज चारसौ पांच पयादे दोलौ तैंतालीस अश्व इसे वाहिनी कहिये अर दोयसै तियालीस रथ दोयसौ तियालीस गज बारामौ पन्द्रह पयादे सातसो उनतीस घोडे याहि पृतिना कहिये अर सावसौ गुणतीस रथ सातसै गुणतीस गज छत्तीसौ पैंतालीस पयादे इक्कीससौ सतासी तुरंग इसे चमू कहिये अर इक्कीससै सतासी रथ इक्कीसस मतासी गज दसहजार नौसै पैंतीस पयादे अर पैंसठसौ इकसठ तुरंग इसे अनीकिनी कहिये । सो पत्तिसे लेय अनीकिनी तक आठ भेद भए । सो यहांलों तो तिगुने बढे अर दश अनीकिनीकी एक अक्षौहिणी होय है ताका वर्णनरथ इक्कीस हजार आठसै सत्तर, अर गज इक्कीस हजार आठसै सचर पियादे एकलाख नौहजार वीनसै पचास अर घोडे पैसठ हजार छसी दस। यह एक अक्षौहिणीका प्रमाण भया । ऐसी चारहजार अक्षौहिणी करि युक्त जो रावण ताहि अति बलवान जानकर भी किहकंधापुरके स्वामी सुग्रीवकी सेना श्रीरामके प्रसादसे निर्भय रावणके सन्मुख होती भई । श्रीरामकी सेना को प्रति निकट आये हुते-सुन नाना पक्षको थरें जो लोक सो परस्पर या भांति वार्ता करते भये देखो-रावणरूप चन्द्रमा विमानरूप जे नक्षत्र तिनके समूहका स्वामी अर शास्त्र में प्रवीण सो पर स्त्रीकी इच्छारूप जे बादल तिनसे आच्छादित भया है जाके महा कांतिकी थरणहारी अठारह हजार राणी तिनसे तो कृप्त न भया अर देखो एक सीताके अर्थसे शोकसे व्याप्त भया है। अब देखिये, राक्षसवंशी अर वानरवंशी इनमें कौनका क्षय होय ? रामकी सेना में पवनका पुत्र हनूमान महा भयंकर देदीप्यमान जो शुभता सोई भई उष्ण किरण उनसे सूर्य तुल्य है। या भांति कैयक तो रामके पक्षके योधाओंका यश वर्णन करते भये अर कैयक समुद्रतै अति गंभीर जो राषणकी सेना ताका वर्णन करते भए अर कैयक जो दंडक वनमें खरदूषणका अर लक्ष्मणका युद्ध भया हुता ताका वर्णन करते भये अर कहते भये चन्द्रोदयका पुत्र विराधित सो है शरीरतुन्य जिनके ऐसे लक्ष्मण तिन्होंने खरदूषणको हता। अति बलके स्वामी लक्ष्मण तिनका बल कहा तुमने न जाना, कैयक ऐसे कहते भये अर कैयक कहते भये कि राम लक्षण की कहा बात ? वे तो बड़े पुरुष हैं एक हनूमानने केते काम किये । मन्दोदरीका तिरस्कारकर सीताको थीर्य बंधाया अर रावणकी सेना जीत लंकामें विघ्न किया, कोट दरवाजे ढाहे । या भांति नानाप्रकारके वचन कहते भये तब एक सुवक्रनामा विद्याधर हंसकर कहता भया कि कहां समुद्र समान रावणकी सेना और कहां गायके खोज समान वानरवंशियों का बल, जो रावण इन्द्रको पकड लाया अर सबों का जीतनहारा सो वानरवंशिनिकर कैसे जीता जाय, सर्व तेजस्वियोंके सिरपर तिष्ठ है मनुष्यनिमें चक्रवतिके नामको सुन कोन थीर्य थरे अर जाके भाई कुम्भकरण महाबलवान त्रिशूलका धारक युद्ध में प्रलय कालकी अग्निसमान भास है सो जगतमें प्रवल पराक्रमका धारक कौन कर जीता जाय, चन्द्रमा समान जाके छत्रको देखकर शत्रुनिकी सेनारूप Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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