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पद्म-पुराण कदाचित् कोई बातकर आपसमें कलुप होय बहुरि मिलि जांय, कुल अर जल इनके भिलनेका अचरज नाहीं तब महाबुद्धिवान मतिसमुद्र बोला इनमें विरोध तो भया यह सबसे सुनिए है पर विभीषण महाधर्मात्मा नीतिवान है शास्त्ररूप जलकर धोया है चित्त जाका महादयावान है, दीन लोकनिपर अनुग्रह करे है अर मित्रनिमें दृढ है अर भाईपने की बात कहो सो भाई पनेका कारण नाही, कर्मका उदय जीवनिके जुदा जुदा होय है। इन कर्मनिके प्रभावकर या जगतमें जीवनिकी विचित्रता है। या प्रस्तावविगै एक कथा है सो सुनहु-एक गिरि एक गोभून ये दोऊ भाई ब्राह्मण हुने सो एक राजा सूर्यमेघ हुना ताके राणी मतिक्रिया ताने दोनोंको पुण्यकी वांछाकर भातमें छिपाय सुवर्ण दिया सो गिरि कपट ने भातविणे स्वर्ण जान गोभूतको छलकर मारा । दोनोंका स्वर्ण हर लिया सो लोभसे प्रीतिभंग होय है और भी कथा सुनो-कौशांबो नंगरी विगै एक वृहद्धन नामा गृहस्थी ताके पुरविदा नामा स्त्री ताके पुत्र अहिदेव महीदेव सो इनका पिता मुवा तब ये दोऊ भाई धनके उपारजने निमित्त समुद्र में जहाज में बैठ गए सो सन द्रव्य देश एक रत्न मोल लिया सो वह रत्नको जो भाई हाथमें लेय ताके ये भाव हों कि मैं दूजे भाईको मारू सो परस्पर दोऊ भाईनिके खोटे भाव भए तब घर आय वह रत्न माताको सौंपा सो माताके ये भाव भए कि दोऊ पुत्रनिको विष देय मारूं तब माता अर दोनों भाइयोंने वा रत्नसे विरक्त होय कालिंदी नदीमें डारा सो रत्नको मछली निगल गई सो मछ नीको धीवरने पकरी पर अहिदेव महादेवहीके बेचो सो अहिदेव महादेवकी बहिन मछलीको विदारती हुनी सो रत्न निकसा । याहके ये भाव भए कि माताको और दोऊ भाइयोको मारूतब याने सकल वृत्तात कहा कि या रत्नके योगसे मेरे ऐसे भाव होय हैं जो तुमको मारूतब रत्नको चूर डारा । माता बहिन अर दोऊ भाई संसारके भाव से विरक्त होय जिनदीक्षा धरते भए नाते द्रव्यके लोभकर भाईनिमें भी वैर होय है अर ज्ञानके उदयकर वैर मिट है अर गिरिने तो लोभके उदयसे गोभूत को मारा भर अहिदेवकं वैर मिट गया सो महाबुद्धि विभीषणका दरपाल आया है ताको मधुर वचनकर विभीषणको बुलाओ तब द्वारपालसो स्नेह जताया अर विभीषणको अति आदरसे चलाया। विभीषण रानके समीप आया सी राम विभीषणका अति आदर कर मिले । विभीषण विनती करता भया-हे देव ! हे प्रभो! निश्चयकर मेरे इस जन्मविणे तुम ही प्रभु हो श्रीजिननाथ तो इस जन्म परभवके स्वामी श्रर रघुनाथ या लोकके स्वामी। या भांति प्रतिज्ञा करी तब श्रीराम कहते भए-तुझे निःसंदेह लंकाका धनी करूगा, सेनामें विभीषणके श्रावनेका उत्साह भया।
अर ताही समय भामण्डल भी आया। कैसा है भामण्डल ! अनेक विद्या सिद्ध भई हैं जाको । सर्व विजियाका अधिपति जब भामण्डल आया तब राम लक्ष्मण आदि सकल हर्षित भए । भामण्डलका अति सन्मान किया आठ दिन हंसवीपमें रहे बहुरे लंकाको सन्मुख भए। नानाप्रकारके अनेक रथ और पवनसे भी अधिक तेजको धरे बहुत तुरंग और मेवमालासे गरंदों के समूह और अनेक सुभटों सहित श्रीरामने लंकाको पयान किया। समस्त विद्याधर सामन्त
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