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________________ पद्म-पुराण किहधाधिपते ! तू दीर्घसूत्री हैं। अब सीताके भाई भामंडलको शीघ्र ही बुलावहु रावण की नगरी हमको अवश्य ही जाना है, कै तो जहाजनि कर समुद्र तिरें अथवा भुजानितें । ये बात सुन सिंहनाद नामा विद्याथर बोला- आप चतुर महाप्रवीण होयकर ऐसी बात मत कहो पर हम तो आपके संग हैं परंतु ऐसा करना जाविषै सबका हित होय । हनूमानने जाय लंका के वन विध्वंसेर लंकाविषै उपद्रव किया सो रावणको क्रोध भया है सो हमारी तो मृत्यु श्रई है। तब जामवंत बोला तू नाहर होयकर मृगकी न्याई कहा कायर होय है अब रावण हू भयरूप है और ३८२ अन्यायमार्गी है की मृत्यु निकट आई है अर अपनी सेनामें भी बडे बडे पोथा विद्याथर महारथी हैं, विद्या विभवकर पूर्ण हैं हजारों आश्चर्यके कार्य जिन्होने किये हैं तिनके नाम धनगति, एकभूत, गजस्वन, क्रूरकेलि, किलभीम, कुंड, गोरवि, अंगद, नल, नील, तडिद्वक मंदर, अर्शनी, अय, चन्द्रज्योति मृगेंद्र, बज्रदृष्टि दिवाकर और उल्काविद्या लांगूलविद्या दिव्यशस्त्र विषै प्रवीण जिनके पुरुषार्थ में विघ्न नाहीं ऐसे हनूमान महाविद्यावान घर भामण्डल विद्याधरोका ईश्वर महेंद्रकेतु अति उग्र है पराक्रम जाका प्रसन्नकीर्ति उपवति अर ताके पुत्र महा बलवान तथा राजा सुग्रीव के अनेक समन्त महा बलवान हैं परम तेजके धारक बरते हैं, अनेक कार्य के करणहारे, श्राज्ञाके पालनहारे ये वचन सुनकर विद्याधर लक्ष्मसकी ओर देखते भए र श्रीरामको देखा सो सोम्यतारहित महा विकरालरूप देखा और भृकुटि चढा महा भयंकर मानो कालके धनुष ही हैं, श्रीराम लक्ष्मण लंकाकी दिशा क्रोधके भरे लाल नेत्रकर चौंके मानों राक्षसों के क्षर करनेके कारण ही हैं बहुरि वही दृष्टी अनुपकी और परी, अर दोनो भाइयोंका मुख मा क्रोधरूप हो गया, कोपकर मंडित भए शिरके केश ढीले होय गए मानों कमलके स्वरूप ही हैं जगत को ताममरूप समकर व्याप्त किया चाहे हैं ऐसा दोऊनिका मुख ज्योतिके मंडल मध्य देख सब विद्याधर गमनको उद्यमी भए संभ्रमरूप है चित जिनका । राघant अभिप्राय जानकर सुग्रीव हनुमानादि सर्व नाना प्रकार के आयुध अर संपदा कर मंडित चलनेको उद्यमी भए । राम लक्ष्मण दोनों भाइयोंके प्रयाण होनेके वादित्रनिके समूहके नादकर पूरित हैं दशदिशा, सो मार्गसिरवदी पंचमीके दिन सूर्यके उदय समय महा उत्साह सहित भले २ शकुन भए सा समय प्रयाण करते भए । कहा कहा शकुन भए कहिए हैं— निघू म अग्निकी ज्याला दक्षिणावर्त देखी अर मनोहर शब्द करते मोर पर वस्त्राभूषण कर संयुक्त सौभाग्यवती नारी सुगन्ध पवन निग्रंथ मुनि छत्र तुरंगों का गम्भीर हींसना घंटाका शब्द दहीका भरा कलश काग पांख फैलाये मधुर शब्द करता, भेरी और शंखका शब्द र विहारी जय होवे सिद्धि होवे नन्दो बधो ऐसे वचन इत्यादि शुभ शकुन भए । राजा सुग्रीव श्री रामके साथ चलनेको उद्यमी भए । सुग्रीवके ठौर २ सुविद्याधरोंके समूह आए । कैसा है सुग्रीव १ शुक्लपचके चन्द्रमा समान है प्रकाश जाका, नाना प्रकारके विमान नाना प्रकारकी 5 जा नाना प्रकारके बाइन नाना प्रकार के आयुध उन सहित बडे बडे विद्याधर आकाशविषै जाते शोभते भए । राजा सुग्रीव हनूमान शन्य दुर्मर्षण नल नील काल सुपेण कुमुद इत्यादि अनेक राजा श्रीरामके लार भए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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