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तिरेपनगां पर्व
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रावण के सुमटोंकी सेना क्षणमात्र में वखेर डारी कैयक मारे कैयक भागे । हे श्रेणिक ! मृगनिके जीतवेको मृगराजका कौन सहाई होय श्रर शरीर बलहीन होय तो घनकी सहायकर कहा १ ता वनके सबही भवन पर वापिका र विमान सारिखे उत्तम मंदिर सब चूर डारे केवल भूमि रहि गई । बनके मन्दिर र वृक्ष विध्वंस किये सो मार्ग होय गया जैसे समुद्र सूक जाय अर मार्ग होय जाय । फोरि डारी हैं होठों की पंक्ति र मारे हैं श्रनेक किंकर सो बाजार ऐसा होय गया मानों संग्रामकी भूमि है, उतंग जे तोरण सो पडे हैं अर ध्वजावों की पंक्ति पडी सो आकाशसे मानों इन्द्रधनुष पडा है पर अपनी जंघा ते अनेक वर्ण रत्नोंके महिलढाहे सो अनेक वर्ण के रहनों की रजकर मानों आकाशमें हजारों इन्द्र धनुष चढे हैं अर पायनकी लातनसे पर्वत समान ऊंचे घर फोर डारे तिनका भयानक शब्द होता भया र कैक तो हाथोंसे मारे पर कईएक पगोंसे मारे घर छाती से वर कांधे से, या भांति रावणके हजारों सुभट मारे सो नगरविषै हाहाकार भया र रत्नोंके महिल गिर पडे, तिनका शब्द भया घर हाथिनिके थंभ उपार डारे र घोडे पवन मंडल पानोंकी न्याई उडे उडे फिरे हैं घर वापी फोर डारी सो कीचड रह गया समस्त लंका व्याकुल भई, मानों चाक चढाई है। लंका रूप सरोवर राक्षसरूप मीनोंसे भरा सो हनूमनरूप हाथीने गाह डारा, तब मेघवाहन वक्तर पहिर बडी फौज लेय आया थर ताके पीछे ही इंद्रजीत आया सो हनुमान उनसे युद्ध करने लगा । लंकाकी बाह्यभूमिविषै महायुद्ध भया जैसा खरदूषणके अर लक्ष्मणके युद्ध भया हुता अर हनूमान चार घोडोंके रथपर चढ धनुषवाण लेय राक्षसों की सेना पर दौडे ।
इन्द्र बहुत युद्धकर हनूमान को नागफांससे परडा अर नगर में ले या सोया श्रायवेसे पहिलेही रावण के निकट हनुमानकी पुकार हो रही थी, अनेक लोग नानाप्रकार कर पुकार कर रहे हुते कि सुग्रीवका बुलाया यह अपने नगरतें किहकंधापुर आया रामसों मिला और तहांते या ओर आया सो महेन्द्रको जीता र साधुत्रों के उपसर्ग निवारे, दधिमुखकी कन्या रामपै पठाई र बज्रमई कोट विध्वंसा, बज्रमुखको मारा घर तकी पुत्री
कासुन्दरी अभिलाषवन्ती भई सो परनी अर ता संग रमा पर पुष्पनामा वन विध्वंसा अर बनपालक दिल करे घर बहुत सुभट मारे घर घटरूप जे स्तन तिनकर सीध सींच मालियों की स्त्रियोंने पुत्रों की नाई जे वृक्ष बढ़ाये हु ते उपार डारे र वृक्षोंसे बेल दूर करीं सो विधवा स्त्रियों की नाई भूमि विधै पडी तिनके पल्लव सूक गए अर फल फूल से नम्रीभूत नानाप्रकार के वृक्ष मसानकेसे वृक्ष कर डारे सो यह अपराध सुन रावणको अतिकोप भया हुता इतनेमें इन्द्रजीत हनुमानको लेकर श्राया सो रावणने याको लोहकी सांकलनि कर बंधाया घर कहता मया यह पापी निर्लज्ज दुराचारी है अब याके देखवेकर कहा ? यह नाना अपराध का करणहारा ऐसे दुष्टको क्यो न मारिये तब सभा के लोक सत्र ही माथा घुनकर कहते भए - हे हनुमान ! जाके प्रसादतें पृथिवीमें तू प्रभुताको प्राप्त भया ऐसे स्वामीके प्रतिकूल होय भूमिगोचरीका दूत भया रावणकी ऐवी कृपा पीठ पीछे डार दई ऐसे स्वामीको तज जे भिखारी निर्धन पृथिवीमें भ्रमते
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