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पन-वाण णकुण्डल नामा नदीके तीर आप विराजे हुने पर मैं हु हुनी ता मध्याह्न समय चारण मुनि आए सो तुम उठकर महा भक्तिकर मुनिको आहार दिया तहां पंचाश्चर्य भए-रत्नवर्षा, कल्प वृक्षोंके पुष्पोंकी वर्षा, सुगन्ध जलकी वर्षा, शीतल मंद सुगन्ध पवन दुन्दुभी वाजे अर आकाशमें देवोंने यह ध्वनि करी थन्य ये पात्र, धन्य दान, ये सब रहस्यकी बात कही अर चूडामणि सिरसे उतार दिया जो याके दिखानेसे उनको विश्वास आवेगा पर यह कहियो-मैं जान हूं आपकी कृपा मापै अत्यंत है तथापि तुम अपने प्राण यन्नसे राखि यो तिहारसे मेरा वियोग भया अब तिहारे यत्नसे मिलाप होयगा ऐसा कह सीता रुदन करती भई तब हनूमानने थीर्य बंधाया अर कही हे माता, जो तुम आज्ञा करोगी सो ही होयगा और शीघ्र ही मिलाप होयगा यह कह हनुमान सीतासे विदा भया अर सीताने पतिकी मुद्रिका अंगुरीमें पहिर ऐसा सुख माना मानों पतिका समागम भया। ... अथानन्तर वनकी नरी हनुमानको देखकर आश्चर्य को प्राप्त भई अर परस्पर ऐसी बात करती भई--यह कोई साक्षात् कामदेव है अथवा देव है सो वनकी शोभा देख्वेको आया है तिनमें कोई एक काम कर व्याकुल होय वीन वजावती भी, किन्नरी देवियोंकैसे हैं स्वर जिनके, कोई यक चन्द्रवदनी वामे हस्तविणे दपंण राख कर याका प्रतिविम्ब णमें दखती भई, देख कर मासक्त मन भई । या मांति समस्त स्त्रियोंको संभ्रम उपजाय हार माला सुन्दर वस्त्र धरे देदीप्यमान अग्निकुमार देववत् सोहता भया। . इ.के वनविणे आवनेली वार्ता रावण ने सुनी तब क्रोधरूप होय रावण ने महानिर्दयी किंकर युद्धविणे जे प्रवीण हुते ते पठाए अर तिनको यह श्राज्ञा करी कि मेरी क्रीडाका जो पुष्पोद्यान तहां मेरा कोई एक द्रोही आया है सो अवश्य मार डारियो । तब ये जायकर वनके रक्षकोंको कहते भए-हे वनके रक्षक हो ! तुम कहा प्रमादरूप होय रहे हो, कोई उद्यानविणै दुष्ट विद्याथर आया है सो शीघ्र ही मरना अथवा पकडना । वह महा अविनयी है, वह कौन है, कहां है ? ऐसे किंकरोंके मुखसे ध्वनि निकसी सो हनूमानने सुनी अर धनुषके धरणहारे शक्तिके धरण हारे गदाके धारणहारे खड्ग बरछीके घरगाहारे अनेक लोग आयते हनूमानने देखे तब पवनका पूत सिंहते भी अधिक है पराक्रम जाका मुकुटविणै रत्न जडित बानरका चिह्न ताकर प्रकाश किण है श्रा. काश जाने आप उनको अपनारूप दिखाग गते सूर्य समान धरूप होंठ डमता लाल नेत्र । तब थाके भयसे सब किंकर भागे तब और क्रूर सुभट आए शक्ति तोमर खड्ग चक्र गदा धनुष इत्यादि प्रायुथ करमें धरै अर अनेक शस्त्र चलावते आए रब अंजनीका पुत्र शम्बरहित हुता सो वनके जे वृक्ष ऊंचे २ थे उनके गमूड उपाड़े अर पर्वतोंकी शिला उपाडी सो रावणके सभटों पर अपनी भुजानिकर वृक्ष अर शिला चलाई मानों काल ही है सो बहुत सामंत मारे । कैसी हैं हनुमानकी भुजा महाभयंकर जो सर्प ताके फण समान है आकार जिनका, शाल वृक्ष पीपल बड चम्पा नीव अशोक कदम्ब कुन्द नाग अर्जुन धव आम्र लोथ कटहल बडे २ वृक्ष उपाड २ भनेक योधा मारे कैयक शिलावोंसे मारे कैयक मुक्कों अर लातोंसे पीस डारे, समुद्र समान
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