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पद्मराण श्रेणिक गौतमस्वामी म्पूछे है-हे नाथ, यक्ष दत्तका वृत्तांत मैं नीका जानना चाहूं हूँ तब गौतमस्वामी कहते भए-हे श्रेणिक, एक कौंचपुर नगर तहां राजा यक्ष राणी राजिलता ताके पुत्र यक्षदत्त सो एक दिन एक स्त्रीको नगरके वाहिर कुटीमें तिष्ठती देख कामवाण कर पीडित भया ताकी ओर चाला रत्रिमें, तब अयन नामा मुनि याको मना करते भए यह यक्षदत्त खड्ग है जाके हाथमें सो विजुलीके उद्योत कर मुनिको देखकर तिनके निकट जाय विनयसंयुक्त पूछता भया-हे भगवान, काहेको मोहि मना किया ? तब मुनि कही-जा को देख तू कामवश भया है सो स्त्री तेरी माता है तातें । यद्यपि सूत्रमें रात्रिमें बोलना उचित नाहीं तथापि करुणाकर अशुभ कार्यते मने किया। तब यक्षदत्तने पूछ। हे स्वामी, यह मेरी माता कैसे है ? तब मुनि कही सुन- एक मृत्यकावती नगरी तहां कणिक नामा वणिक, ताके धू नामा स्त्री ताके बन्धुदत्त नामा पुत्र ताकी स्त्री मित्रवती लतादत्तकी पुत्री सो स्त्रीको छाने गर्भ राखि बंधुदत्त जहाज वेठ देशान्तर गया ताको गए पीछे याकी स्त्रीके गर्भ जान सासू ससुरने दुराचारणी जान घरसे निकाल दई सो उत्पलका दासी को साथ लेय बडे सारथीकी लार पिताके घर चाली सा उत्पलका सर्पने डसी वनमें मुई अर यह मित्रवती शीलमात्र ही है सहाय जाके सो कौंचपुरमें भाई अर महाशोक की भरी उपवन में पुत्रका जन्म भया तब यह तो सरोवर में वस्त्र धोयबे गई अर पुत्ररत्न कंवलमें वेढा सो कंबलसंयुक्त पुत्रको स्वान ले गया सो काहूने छुडाया, राजा यक्षको दिया, ताके राणी राजिलता अपुत्रवती सो राजाने पुत्र राणीको सोंपा, ताका यक्षदत्त नाम परा सो तू है अर यह तेरी माता वस्त्र धोय आई सो तोहि न देखि विलाप करती भई, एक देवपुजारीने ताहि दयाकर धैर्य बन्धाया-तू मेरी बहिन है ऐसा कह राखी सो यह मित्रवती सहायरहित लज्जाकर अकीर्तिके भय थकी वापके घर न गई । अत्यंत शीलकी भरी जिनधर्मविगै तत्पर दरिद्रीकी कुटीविणै रहे, सो रौं भ्रमण करता देख कुभाव किया अर याका पति बधुदत्त रस्न कंवल दे गया हुता, ताविष ताहि लपेट सो सरीवर गई हुती, सो रत्न कंवल राजाके घर में है और वह बालक तू है या भांति मुनि कही तब यह मुनिको नमस्कार कर खड़ग हाथमें लेय राजा यक्षपै गया और कहता भया-या खड्ग कर तेरा सिर काटूंगा नातर मेरे जन्म का वृत्तांत कहो, तब राजा यक्षने यथावत् वृत्तांत कहा अर वह रत्न कंवल दिखाया, सो लेयकर यचदत्त अपनी माता कुटीमें तिष्ठे यी तासू मिला अपना पिता बंधुदत्त ताको बुलाया, महा उत्सव पर महा विभव कर मंडित माता पिता मिला, यह यज्ञदत्तकी कथा गौतमस्वामी राजा श्रेयिकसूकही -जैसे यक्षदत्तको मुनिने माताका वृत्तांत जनाया तैसे लदाणने सुग्रीवको प्रतिज्ञा विस्मरण होय गयी हुनी सो जनाया, सुग्रीव लक्ष्मण के संग शीघ्र ही रामचन्द्र पै आया नमस्कार किया अर अपने सब विद्याधर सेवक महाकुलके उपजे बुलाए । वे या वृत्तांतको जानते हुने पर स्वामी कायमें तत्पर तिनको समझाय कर कहा सो सर्व ही सुनी रामने मेरा बडा उपकार किया। अब सीताकी खबर लाय दो तातें तुम दिशानिको जाश्रो अर सीता कहां है यह खबर लावो. समस्त पृथिवी पर जल स्थल आकाशमें हेरो, जम्बूद्वीप लवण समुद्र धातकी खण्ड कुलाचल वन सुमेरु नाना प्रकार के विद्याधरनिके नगर समस्त श्रस्थानक सर्व दिशा हो।
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