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________________ मोनालीसा भी परन्तु राम ने भोगनि में मन न किया । सीताविषे अत्यन्त दत्तचिस समस्त चेष्टारहित महामादरकरि सीता को ध्यावते तिष्ठं जैसे मुनिराज मुक्तिको ध्यावें । वे विद्याधरकी पुत्री गान करें, सो उनकी चनि न सुनें अर देवांगनापमान तिनका रूप मो न देखें रामको सर्व दिशा जानकी मई भासे पर कछू भासे नाही और कथा न करें । ए सुग्रीव की पुत्री परणी , सो पास बैठी तिनको हे जानकसुते ! ऐसा कह बतलावे , काकरे. प्रीति कर पूछे अरे काक! तू देश २ भ्रमण कर है तैने जानकी हू देखी अर सरोवर में कमल फूल रहे हैं तिनकी मकरन्द कर जल सुगन्ध होय रहा है तहां चकवा चरुवीके युगल कलोल करते देख चितारें सीता बिन रामको सर्व शोभा फोकी लागे सीता के शरीर के संयोगकी शंकाकरि पवनसे पालिंगन करें कदाचित पवन सीता जीके निकटते आई होय जा भूमिमें सीता जी तिष्ठे है ता भूमिको धन्य गिने श्रर सीता बिना चन्द्रमाकी चांदनीको अग्नि समान जाने मनमें चिन्तवें कदाचित् सीता मेरे वियोग रूप अग्नि करि भस्म भई होय अर मन्द मन्द पवन कर लगानि को हालती देख जाने हैं यह जानकी ही है अर वेल पत्र हालते देख जानें जानकी के वस्त्र फरहरे हैं अर भ्रमर संयुक्तफूल देख जानें ये जानकी के लोचन ही हैं। अर कोपल देख जानें ये जानकी के कर पल्लव ही हैं, पर श्वेत श्णम आरक्त तीनों जाति के कमल देख जानें सीता के नेत्र तीन रंग को धरै हैं अर पुष्पनि के गुच्छे देख जानें ये जानकी के शोभायमान स्तन ही हैं । अर कदली के स्तंभ में जंघानि की. शोभा जानें, अर लाल कमलनि विर्षे चरणनि की शोभा जानैं , संपूर्ण शोभा जानकी रूप ही जाने । अथानन्तर सुग्रीव सुताराके महल में ही रहा, रामपै आए बहुत दिन भये तब रामने विचारी ताने सीता न देखी मेरे वियोग कर तप्तायमान भई वह शीलवंती मर गई तातें सुग्रीव मेरे पास नाहीं आवे अथवा वह अपना राज्य पाय निश्चित भया हमारा दुख भूल गया यह चितवनकर राम की प्रांखनिते आंसू पड़े तब लक्ष्मण रामको सचिंत देख कोपकर लाल भए हैं नेत्र जाके भाकुलित है मन जाका, नंगी तलवार हाथमें लेय सुग्रीव ऊपर चाला सो नगर कम्पायमान भया। सम्पूर्ण राज्यके अधिकारी तिनको उलंघ सुग्रीवके महलमें जाय ताको कहा-रे पापी, अपने परमेश्वर राम ती स्त्रीके दुख कर दुखी अर तू दुर्बुद्धि स्त्रीसहित सुखनों राज्य करे, रे पापी, विद्याधरवायस विषयलुब्ध दुष्ट, जहां रघुनाथने तेरा शत्रु पठाया है तहां मैं तोहि पठाऊगा या भांति क्रोधके उगा वचन लक्ष्मण जब कहे तब वह हाथ जोड नमस्कार कर लक्ष्मणका क्रोध शांत करता भया । सुग्रीव कहे है-हे देव, मेरी भूल माफ करो, मैं करार भूलगया, हम सारिखे खुद्र मनुष्यनिके खोटी चेष्टा होय है अर सुग्रीवकी सम्पूर्ण स्त्री कांपती हुई लदमयको प्रर्षदेय आरती करती भई । हाथ जोड नमस्कार कर पतिकी भिक्षा मांगती भई । तब आप उत्तम पुरुष तिनको दीन जान कुश करते भए । यह महन्त पुरुष प्रणाम मात्र ही कर प्रसन्न होंय अर दुर्जन महा दान लेकर हू प्रसन्न न होय, लक्ष्मणने सुग्रीवको प्रतिज्ञा चिताय उपकार किया जैसे यक्षदत्तको माताका स्मरण कराय मुनि उपकार करते भए । यह वार्ता सुन राजा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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